क्रोध

Last Updated 25 May 2022 12:42:06 AM IST

अगर हम क्रोध की जड़ को खंगालने का प्रयास करें तो यही सामने आता है कि बाहरी गतिविधियां ही इसका कारण है..इनमें से कुछ ऐसी हैं जो किसी ना किसी रूप में हमारे विरुद्ध कार कर रही हैं।




सद्गुरु

लेकिन क्या आप इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि जब बाहरी हालात हमारे विरुद्ध होते हैं तो हमें अपने लिए और ज्यादा सपोर्टवि हो जाना चाहिए, लेकिन सामान्य मनुष्य इससे ठीक उलट कार्य करता है..जब हालात अनुकूल नहीं होते तो हम और ज्यादा अग्रेसिव हो जाते हैं.. हम और ज्यादा क्रोधी हो जाते हैं..जबकि हमारा ऐसा करना भीतरी..अंदरूनी तौर पर हमें और ज्यादा परेशान करता है..हालात हमारे लिए पूरी तरह प्रतिकूल हो जाते हैं। जिसपर आप क्रोधित हुए उससे कहीं ज्यादा कष्ट आपको झेलना पड़ जाता है। जो व्यक्ति अपने ही विरु द्ध जा रहा है..क्या आप उसे एक समझदार इंसान कह सकते हैं?

निश्चित तौर पर उसे एक नासमझ ही माना जाएगा..अगर आपके लिए यह एक सुखद अनुभव है तो आप दिन-रात क्रोधित रहें..आप हमेशा गुस्सा करते रहें..किसी को कोई परेशानी नहीं होगी। अगर आप इसे एंजॉय कर रहे हैं..तो ऐसा करते रहें, किसी को कोई समस्या नहीं है..लेकिन अगर यह आपके लिए ही कष्टप्रद हो जाता है तो आप ही बताइए यह कष्ट अपने लिए किसने चुना है? आपके आसपास बहुत से ऐसे लोग हैं तो इस कष्ट के लिए किसी अन्य को उत्तरदायी ठहराने का प्रयत्न करेंगे। ये लोग जो करना चाहते हैं वहीं करते हैं, लेकिन क्या आप भी वहीं कर रहे हैं जो आप चाहते हैं..यही सवाल सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

क्या आपने अपने मस्तिष्क को इस बात के लिए तैयार कर लिया है कि आप क्या करना चाहते हैं..आपने कैसे रहना है? अगर आप अंदरूनी हालातों की वजह से खुद को परेशान करते हैं तो आप ही बताइए इसमें कैसी समझदारी..अब आप ही बताइए आपका गुस्सा होना, आपका क्रोध करना समझदारी की पहचान है या आपकी नासमझी की? जब आप अपनी इस नासमझी को समझ जाएंगे तभी आपको वास्तविक रूप में सुखद अनुभव होगा। जब आप इस बात का अनुभव कर लेंगे कि आपका गुस्सा करना नासमझी की निशानी है तो आपका क्रोध अचानक ही कुछ दिनों में गायब हो जाएगा।



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