उदासी

Last Updated 17 May 2022 12:03:41 AM IST

दुख के बारे में भी उत्सव की दृष्टि ही रखें।




आचार्य रजनीश ओशो

जैसे कि: तुम उदास हो-तो उदासी के साथ तादात्म्य न बनाएं..साक्षी बनें रहें और उदासी की घड़ी का मजा लें क्योंकि उदासी का अपना एक सौंदर्य है, जो तुमने कभी देखा ही नहीं। तुम अपने को उदासी से इस तरह जोड़ लेते हो कि उदास घड़ी की गहराइयों का सौंदर्य देख ही नहीं पाते।

अगर तुम ऐसा देख सको तो पाओगे कि तुम कितने ही खजानों को चूक रहे हो। जरा गौर करना-- तुम सुख में उतने गहरे कभी नहीं होते जितने गहरे तुम तब होते हो, जब उदास होते हो। उदासी में एक तरह की गहराई होती है; और खुशी में उथलापन रहता है। कभी जाओ और प्रसन्न लोगों को देखो। ये तथाकथित प्रसन्न लोग, ये प्लेब्वाय और प्लेर्ग-इन्हें तुम क्लब, होटल या थिएटरों में पाओगे-तुम इन्हें सदा चहकते, मुस्कराते पाओगे। तुम इन्हें सदा उथले, खोखले पाओगे। उनमें कोई गहराई नहीं होती।

प्रसन्नता सतह के ऊपर लहरों की तरह है; तुम खोखला जीवन जीते हो, लेकिन उदासी में एक तरह की गहराई है। जब तुम उदास होते हो तो यह सतह पर लहरों की तरह नहीं होता, इसमें सागर जैसी गहराई होती है : मीलों-मील गहरी। गहराई की ओर बढ़ें, इसे देखें। प्रसन्नता में शोरगुल है; उदासी में एक तरह का मौन है। प्रसन्नता दिन की तरह है और उदासी रात की तरह। प्रसन्नता जैसे प्रकाश की तरह है और उदासी अंधकार की तरह। प्रकाश आता-जाता है; अंधकार सदा रहता है-यह शात है। प्रकाश का होना कभी-कभी है; अंधकार सदा है।

जब तुम उदासी में उतरते हो तब तुम्हें इन सब बातों का अनुभव होता है। अचानक तुम्हें बोध होने लगता है कि उदासी वहां एक वस्तु की तरह मौजूद है, तुम उसे देख रहे हो, उसके साक्षी हो, और अचानक तुम प्रसन्न होने लगते हो। उदासी इतनी सुंदर! अंधेरे के एक फूल की तरह। रसातल की तरह, इतनी शांत, इतना संगीतमय; कोई शोरगुल नहीं, कोई हलचल नहीं। तुम अंतहीन गिरते चले जाते हो, और फिर पूर्णतया पुनर्जीवित होकर उसमें से निकल आते हो। यह विश्रांति है।

यह तुम्हारी दृष्टि पर निर्भर करता है। जब तुम उदास होते हो तो तुम्हें लगता है कि कुछ बुरा हुआ है। तब तुम किसी दूसरे के पास जाते हो: किसी पार्टी में या फिर तुम टी वी या रेडियो चला देते हो, या फिर अखबार पढ़ने लगते हो-- कुछ भी, जिससे तुम इसे भुला सको। तुम्हें यह गलत दृष्टि दी गई है-कि उदासी गलत है। इसमें कुछ बुरा नहीं है। यह जीवन का दूसरा छोर है।



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