आत्मविश्वास
नेपोलियन के बचपन में कोई यह नहीं कहता था कि बड़ा होकर यह किसी काम का निकलेगा।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
डॉक्टर कैलमर्स और डॉक्टर कुक को उनके अध्यापकों ने स्कूल से यह कहकर निकाल दिया था कि इन पत्थरों से सिर मारना बेकार है। ये उदाहरण बताते हैं कि दूसरे लोग किसी के संबंध में जो कहते हैं वह पूर्णत: सत्य नहीं होता। यदि आपको उपरोक्त भावों की तरह लोगों की ओर से निराशा, र्भत्सना, उपेक्षा मिलती है, आपको बुरा या असफल कहा जाता है तो इससे तनिक भी विचलित न हूजिए, मन को जरा भी गिरने न दीजिए।
सर्दी, गर्मी के घातक प्रभावों से वसों द्वारा अपनी रक्षा करते हैं, मलेरिया या हैजा के कीटाणुओं को दवा के द्वारा शरीर में से मार भगाते हैं, इसी प्रकार आत्मविश्वास द्वारा उन प्रभावों को अपने मस्तिष्क में से निकाल बाहर करिए जो आपको नीच, असफल और मूर्ख ठहराते हैं। इसके लिए मजबूत बनिए। कहने वाला कोई कितना ही बड़ा, कितना ही धनवान, कितना ही प्रतिष्ठित क्यों न हो आप यह मानने को कदापि तत्पर मत हुजिए कि आपके ऊपर ‘बुराइयों ने कब्जा जमा लिया है, दुर्भावना से ग्रसित हो गए हैं, योग्यता खो बैठे हैं, पाप में डूबे हुए हैं।’
हालांकि यह भी हो सकता है कि अन्य लोगों की भांति आप में भी कुछ दोष हों। ये त्रुटियां ऐसी नहीं हैं, जो दूर न हो सकें। भूतकाल में कुछ ऐसे काम जरूर बन पड़े होंगे जो प्रतिष्ठा को घटाने वाले समझे जाते हों और आगे भी ऐसे अवसर बन पड़ने की संभावना है क्योंकि पूर्णता की मंजिल क्रमश: पार होती है। फसल अपनी अवधि पर पकती है, आपको हटाकर पूर्णता प्राप्त करने के लिए कुछ समय चाहिए। पारे को शुद्ध करके रसायन बना देने में वैद्य को कुछ समय लगता है, आपको भी निर्दोष मनोस्थिति तैयार करने के लिए कुछ अवकाश चाहिए। यह समय एक जन्म से अधिक भी हो सकता है।
सच तो यह है कि पथरीले मार्ग को पार करने में ठोकरें लगने की आशंका रहेगी ही, जिस दुर्गम पर्वत पर आप चढ़ रहे हैं, उसमें कंकड़-पत्थर पड़े हुए हैं, बहुत बार ठोकरें लगने का क्रम चलता रहेगा। यदि हर ठोकर पर वेदना प्रकट करने की नीति ग्रहण करेंगे तो यह मार्ग रु दन और पीड़ाओं से भरा हुआ, आनंदरहित हो जाएगा। इसलिए समभूमि, चट्टान और पथरीले मार्ग का हषर्-विषाद न करते हुए प्रधान लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते चलिए। यही अभीष्ट होगा।
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