आध्यात्मिकता
मित्रो! हमने दीपक जलाया और कहा कि ए दीपक! जल और हमको भी सिखा।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
ए कम हैसियत वाले दीपक, एक कानी कौड़ी की बत्ती वाले दीपक, एक छटांक भर तेल लिए दीपक, एक मिट्टी की ठीकर में पड़े हुए दीपक! तू अंधकार में प्रकाश उत्पन्न कर सकता है। मेरे जप से तेरा संग ज्यादा कीमती है। तेरे प्रकाश से मेरी जीवात्मा प्रकाशवान हो, जिसके साथ में खुशियों के इस विवेक को मूर्तिवान बना सकूं। हमारे शास्त्रों में बताया गया है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’। ए दीपक! हमने तुझे इसलिए जलाया है कि तू हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चले।
तमसो मा ज्योतिर्गमय अंतरात्मा की भूली हुई पुकार को हमारा अंत:करण श्रवण कर सके और इसके अनुसार हम अपने जीवन को प्रकाशवान बना सकें। अपने मस्तिष्क को प्रकाशवान बना सकें। दरअसल, दीपक जलाने का यही उद्देश्य होता है। सिर्फ भावना का ही दीपक जलाना होता, तो भावना कहती कि दीपक जला लीजिए तो वही बात है, मशाल जला लीजिए तो वही बात है, आग जला लीजिए तो वही बात है। स्टोव को जला लीजिए, बड़ी वाली अंगीठी, अलाव जलाकर रख दीजिए। तो सवाल पैदा होता है कि इससे क्या बनने वाला है, और क्या बिगड़ने वाला है?
आग जलाने से भगवान का क्या नुकसान है, और दीपक जलाने से भगवान का क्या बनता है? अत: ए दीपक! तू हमें अपनी भावना का उद्घोष करने दे। भावना से किए गए हमारे उपक्रम को तेरी प्रशस्ति मिले तो यकीनन हमारे प्रयास सद्प्रयास कहलाएंगे। कहलाएंगे ही नहीं, बल्कि सद्प्रयास ही होंगे। साथियो! हम भगवान के चरणारविन्द पर फूल चढ़ाते हैं। हम खिला हुआ फूल, हंसता-खिलखिलाता हुआ फूल, सुगंध से भरा हुआ फूल, रंग-बिरंगा फूल और मुस्कुराता हुआ प्रफुल्लित फूल ले आते हैं। कह सकते हैं कि ऐसे फूल में में हमारी जवानी थिरक रही है, और हमारा जीवन थिरक रहा होता है। हमारी योग्यताएं और प्रतिभाएं थिरक रही होती हैं।
हमारी भावनाएं थिरक रही होती हैं। हमारा हृदयकंद कैसे सुंदर फूल जैसे है। उसे जहां कहीं भी रख देंगे, जहां कहीं भी भेज देंगे, वहीं स्वागत होगा। उसे कुटुम्बियों को भेज देंगे, तो वे खुश। जब लड़का कमा कर लाता है। आठ सौ पचास रु पये कमाने वाला इंजीनियर पैसा देता है, तो सोफा सेट बनते चले जाते हैं। माया घर में आती चली जाती है।
Tweet |