त्याग और सेवा

Last Updated 21 Mar 2022 12:38:59 AM IST

त्याग के साथ-साथ सेवा भी होनी चाहिए। जिस व्यक्ति को जिस वस्तु की आवश्यकता है, उसे वही दी जाए।


श्रीराम शर्मा आचार्य

कौन क्या चाहता है, इसके आधार पर निर्णय नहीं हो सकता कि उसे वही वस्तु मिलनी चाहिए। सन्निपात का रोगी मिठाई मांगता है, पर मिठाई देना तो उससे दुश्मनी करना है। आपका कोई प्रियजन कुमार्ग पर चलता है और उस दुष्कर्म की पूर्ति में आपको सहायक बनाना चाहता है।

यदि आप उसकी सहायता करने लगें, तो यह उसके साथ भयंकर अपकार करना होगा। आपको सुयोग्य सिविल सर्जन की तरह जांच करनी होगी कि उसे वास्तव में क्या कष्ट है और उसका उपचार किस प्रकार करना चाहिए। हैजे की बीमारी में बड़ी भारी प्यास लगती है, पर सुयोग्य डॉक्टर बीमार को मनमानी मात्रा में पानी नहीं पीने देता। हो सकता है कि रोगी उस समय डॉक्टर से नाराज हो और उसके साथ अभद्र व्यवहार करे, पर डॉक्टर प्रेमी है, इसलिए तात्कालिक प्रतिक्रिया की ओर ख्याल नहीं करता और रोगी के दीर्घकालीन हित को अपने मन में रखते हुए अपना कार्य प्रारंभ करता है।

घर के जिन लोगों की मनोभूमि में जो त्रुटि देखें, उसे दूर करने में प्रयत्नशील रहें। त्याग वृत्ति से उन्हें प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें पर कैंची से काट-छांट कर इन पेड़ों को सुरम्य बनाने के .प्रयत्न में भी न चूकें। अन्यथा यदि उनकी कुभावनाओं को सिंचन मिलता रहा तो एक दिन बडे विकृत कंटीले झाड़ बन सकते हैं। प्रेम के दो अंगों को पूरी तरह हृदयंगम कीजिए-त्याग और सेवा, दान और सुधार। खेती को पानी की जरूरत है, पर निराई की भी कम आवश्यकता नहीं। दोनों काम एक दूसरे से कुछ विपरीत जान पड़ते हैं, सहायता और सुधार का एक साथ मेल मिलता नहीं दिखता, यह कार्य बड़ा कठिन प्रतीत होता है, इसलिए तो प्रेम करना तलवार की धार पर चलना कहा गया है। प्रेमी को तलवार की धार पर चलना पडता है।

नट अपने घर कें आंगन में कला खेलना सीखता है। आप अपने परिवार में प्रेम की साधना आरंभ कीजिए। शिक्षा से अपने प्रियजनों के अंत:करणों में ज्ञान की ज्योति जलाइए, उन्हें सत-असत का विवेक प्राप्त करने में सहायता दीजिए परंतु सावधान, यह कार्य गुरू की तरह आरंभ न किया जाए। अहंकार का इसमें एक कण भी न हो। सेवा का दूध अहंकार की खटाई से फट जाएगा। अहंकारपूर्वक उपदेश करेंगे तो तिरस्कार और उपहास ही हाथ लगेगा।



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