अहिंसा

Last Updated 08 Mar 2022 02:51:09 AM IST

मेरा मानना है कि आचरण से अहिंसा उपलब्ध नहीं होती। मैंने यह नहीं कहा कि अहिंसा से आचरण उपलब्ध नहीं होता। इसके फर्क को समझ लीजिए आप।


आचार्य रजनीश ओशो

हो सकता है कि मैं मछली न खाऊं, लेकिन इससे मैं महावीर नहीं हो जाऊंगा, लेकिन यह असंभव है कि मैं महावीर हो जाऊं और मछली खाऊं। इस फर्क को आप समझ लें। आचरण को साध कर कोई अहिंसक नहीं हो सकता, लेकिन अहिंसक हो जाए तो आचरण में अनिवार्य रूपांतरण होगा।

दूसरी बात यह कि मैंने बुद्ध और महावीर को अहिंसक कहा, लेकिन बुद्ध मांस खाते थे। बुद्ध मरे हुए जानवर का मांस खाते थे। उसमें कोई भी हिंसा नहीं है, लेकिन महावीर ने उसे वर्जित किया किसी संभावना के कारण। इसे लेकर उनके मन में किसी भी तरह की दुविधा वाली स्थिति नहीं थी। जैसा कि आज जापान में है। सब होटलों के, दुकानों के ऊपर तख्ती लगी हुई है कि यहां मरे हुए जानवर का मांस मिलता है। अब इतने मरे हुए जानवर कहां से मिल जाते हैं, यह वाकई सोचनीय विषय है। बुद्ध चूक गए, बुद्ध से भूल हो गई। हालांकि मरे हुए जानवर का मांस खाने में हिंसा नहीं है, क्योंकि मांस का मतलब है कि मार कर खाना। मारा नहीं है तो हिंसा नहीं है, लेकिन यह कैसे तय होगा कि लोग फिर मरे हुए जानवर के नाम पर मार कर नहीं खाने लगेंगे! इसलिए बुद्ध से चूक हो गई है और उसका फल पूरा एशिया भोग रहा है।

बुद्ध की बात तो बिल्कुल ठीक है, लेकिन बात के ठीक होने से कुछ नहीं होता; किन लोगों से कह रहे हैं, यह भी सोचना जरूरी है। महावीर की समझ में भी आ सकती है यह बात कि मरे हुए जानवर का मांस खाने में क्या कठिनाई है। जब मर ही गया तो हिंसा का कोई सवाल नहीं है, लेकिन जिन लोगों के बीच हम यह बात कह रहे हैं, वे कल पीछे के दरवाजे से मार कर खाने लगेंगे। वे सब सज्जन लोग हैं, वे सब नैतिक लोग हैं, बड़े खतरनाक लोग हैं।

वे रास्ता कोई-न-कोई निकाल ही लेंगे, वे पीछे का कोई दरवाजा खोल ही लेंगे, तरकीब तलाश ही लेंगे। मैं बुद्ध और महावीर दोनों को पूर्ण अहिंसक मानता हूं और ऐसा सोचते हुए मेरे मन में किसी भी तरह की दुविधा नहीं है। बुद्ध की अहिंसा में रत्ती भर कमी नहीं है, लेकिन बुद्ध ने जो निर्देश दिया है, उसमें चूक हो गई है। वह चूक समाज के साथ हो गई है। अगर समझदारों की दुनिया हो तो चूक होने का कोई कारण नहीं है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment