पहचान

Last Updated 19 Jan 2022 04:03:39 AM IST

अगर तार्किक रूप से देखा जाए तो किसी चीज से अपनी पहचान न बनाने का मतलब है कि आपके और आपके काम के बीच एक दूरी है।


सद्गुरु

लेकिन पहचान नहीं बनाने का मतलब उसके साथ जुड़ाव न रखना नहीं है। दरअसल, जब आप कोई पहचान नहीं रखते तो आप सजग रूप से खुद को जोड़ सकते हैं। अगर आप अपने जीवन की हर स्थिति में खुद को झोंक नहीं देते, तो इसकी सिर्फ एक वजह है कि आपने अपनी पहचान बहुत गहरी बना रखी है।

आप खुद को जीवन के साथ सचमुच तभी जोड़ पाएंगे, जब आप इससे अपनी पहचान स्थापित नहीं करेंगे। यह बात विचार और हालात दोनों पर ही लागू होती है। मान लीजिए, आपके प्रियजन के साथ कुछ घटित हुआ और आपने उनके साथ अपनी पहचान बनाकर नहीं रखी है, तब भी आप अपनी तरफ से हर चीज अपनी पूरी क्षमता के साथ करेंगे। आपकी पहचान स्थापित न होने का मतलब यह नहीं है कि आप का प्रेम, आपका लगाव सब कुछ चला गया।

अगर आपने अपनी पहचान बनाई होगी, तो आप शायद सो नहीं पांएगे, खा नहीं पाएंगे, आप वो सब कुछ ठीक तरह से नहीं कर पाएंगे, जो सामान्य स्थिति में आप करते। अब तक सारे लोगों ने, सारे अज्ञानी लोगों ने आपको हमेशा यकीन दिलाया है कि  आपका कोई अपना बीमार होता है, या उसके साथ कुछ बुरा होता है तो आपको पूरी तरह से टूट जाना चाहिए, नहीं तो समझा जाएगा कि आप उन्हें प्यार नहीं करते। जबकि यह सच नहीं है। प्रेम असमर्थता नहीं है, प्रेम एक क्षमता है। प्रेम प्रतिबद्धता है।

बिल्कुल जरूरी नहीं है कि आप बिखर जाएं। अपनों को मुश्किल में पाकर आप टूट जाते हैं, तो इसकी साधारण सी वजह है कि आप उनसे अपनी पहचान बनाए हुए हैं, इसकी वजह यह नहीं है कि आप उनसे जुड़े हुए हैं। तब आपको जीवन का आनंद लेने में अपराधबोध महसूस होता है। घर पर कोई बीमार है, मैं हंस रहा हूं, इसे लेकर तो अपराधबोध महसूस करना चाहिए-ये सब बकवास बातें हैं। एक इंसान बीमार है, तो पूरी दुनिया को बीमार होने की जरूरत नहीं है। बेहतर होगा कि बाकी लोग आनंदित रहें और बीमार के लिए जो बेहतर हो सकता है करें। उसके प्रति हमदर्दी दिखाने के लिए सबका बीमार पड़ जाना तो ठीक नहीं है न?



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