बोया पेड़ बबूल का..

Last Updated 25 Nov 2021 05:49:15 AM IST

पुराने समय में एक राजा था। वह अक्सर अपने दरबारियों और मंत्रियों की परीक्षा लेता रहता था।


श्रीराम शर्मा आचार्य

एक दिन राजा ने अपने तीन मंत्रियों को दरबार में बुलाया और तीनों को आदेश दिया कि एक-एक थैला लेकर बगीचे में जाएं और वहां से अच्छे-अच्छे फल तोड़ कर लाएं। तीनों मंत्री एक-एक थैला लेकर अलग-अलग बाग में गए। बाग में जाकर एक मंत्री ने सोचा कि राजा के लिए अच्छे-अच्छे फल तोड़ कर ले जाता हूं ताकि राजा को पसंद आएं। उसने चुन-चुन कर अच्छे-अच्छे फलों को अपने थैले में भर लिया। दूसरे मंत्री ने सोचा, ‘कि राजा को कौन-सा फल खाने हैं?’ वो तो फलों को देखेगा भी नहीं। ऐसा सोचकर उसने अच्छे-बुरे जो भी फल थे, जल्दी-जल्दी इकट्ठा करके अपना थैला भर लिया। तीसरे मंत्री ने सोचा कि समय क्यों बर्बाद किया जाए, राजा तो मेरा भरा हुआ थैला ही देखेंगे। ऐसा सोचकर उसने घास फूस से अपने थैले को भर लिया। अपना-अपना थैला लेकर तीनों मंत्री राजा के पास लौटे। राजा ने बिना देखे ही अपने सैनिकों को उन तीनों मंत्रियों को एक महीने के लिए जेल में बंद करने का आदेश दे दिया और कहा कि इन्हें खाने के लिए कुछ नहीं दिया जाए। ये अपने फल खाकर ही अपना गुजारा करेंगे। अब जेल में तीनों मंत्रियों के पास अपने-अपने थैलों के अलावा और कुछ नहीं था।

जिस मंत्री ने अच्छे-अच्छे फल चुने थे, वो बड़े आराम से फल खाता रहा और उसने बड़ी आसानी से एक महीना फलों के सहारे गुजार दिया। जिस मंत्री ने अच्छे-बुरे गले-सड़े फल चुने थे वो कुछ दिन तो आराम से अच्छे फल खाता रहा रहा लेकिन उसके बाद सड़े-गले फल खाने की वजह से वो बीमार हो गया। उसे बहुत परेशानी उठानी पड़ी और बड़ी मुश्किल से उसका एक महीना गुजरा। लेकिन जिस मंत्री ने घास फूस से अपना थैला भरा था वो कुछ दिनों में ही भूख से मर गया। दोस्तो, यह तो एक कहानी है। लेकिन इस कहानी से हमें बहुत अच्छी सीख मिलती है कि हम जैसा करते हैं, हमें उसका वैसा ही फल मिलता है। यह भी सच है कि हमें अपने कर्मो का फल ज़रूर मिलता है। इस जन्म में नहीं, तो अगले जन्म में हमें अपने कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। एक बहुत अच्छी कहावत हैं कि जो जैसा बोता है, वो वैसा ही काटता है। अगर हमने बबूल का पेड़ बोया है, तो हम आम नहीं खा सकते। हमें सिर्फ  कांटे ही मिलेंगे।



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