प्रज्ञा योग

Last Updated 11 Nov 2021 04:08:19 AM IST

प्रात: उठने से लेकर सोने तक की व्यस्त दिनचर्या निर्धारित करें। उपार्जन, विश्राम, नित्य कर्म, अन्यान्य कामकाजों के अतिरिक्त आदशर्वादी परमार्थ प्रयोजनों के लिए एक भाग निश्चित करें।


श्रीराम शर्मा आचार्य

साधारणतया आठ घंटा कमाने, सात घंटा सोने, पांच घंटा नित्य कर्म एवं लोक व्यवहार के लिए निर्धारित रखने के उपरांत चार घंटे परमार्थ प्रयोजनों के लिए निकालना चाहिए। इसमें भी कटौती करनी हो, तो न्यूनतम दो घंटे तो होने ही चाहिए।

इससे कम में पुण्य परमार्थ के, सेवा साधना के सहारे बिना न सुसंस्कारिता स्वभाव का अंग बनती है और न व्यक्तित्व का उच्चस्तरीय विकास संभव होता है। आजीविका बढ़ानी हो तो अधिक योग्यता बढ़ाएं। परिश्रम में तत्पर रहें और उसमें गहरा मनोयोग लगाएं। अपव्यय में भी कठोरतापूर्वक कटौती करें। सादा जीवन उच्च विचार का सिद्धांत समझें।

अपव्यय के कारण अहंकार, दुर्व्यसन, प्रमाद बढ़ने और निन्दा, ईष्र्या, शत्रुता पल्ले बांधने जैसी भयावह प्रतिक्रियाओं का अनुमान लगाएं। अहर्निश पशु प्रवृत्तियों को भड़काने वाले विचार ही अंतराल पर छाए रहते हैं। अभ्यास और समीपवर्ती प्रचलन मनुष्य को वासना, तृष्णा और अहंकार की पूर्ति में निरत रहने का ही दबाव डालता है। संबंधी, मित्र, परिजनों के परामर्श प्रोत्साहन भी इसी स्तर के होते हैं। लोभ, मोह और विलास के कुसंस्कार निकृष्टता अपनाए रहने में ही लाभ तथा कौशल समझते हैं। ऐसी ही सफलताओं को सफलता मानते हैं।

इसे चक्रव्यूह समझना चाहिए। भव-बंधन के इसी घेरे से बाहर निकलने के लिए प्रबल पुरु षार्थ करना चाहिए। कुविचारों को परास्त करने का ही उपाय है-प्रज्ञा साहित्य का न्यूनतम एक घंटा अध्ययन अध्यवसाय। इतना समय एक बार न निकले तो उसे जब भी अवकाश मिले, थोड़ा-थोड़ा करके पूरा करते रहना चाहिए। प्रति दिन प्रज्ञा योग की साधना नियमित की जाए। उठते समय आत्मबोध, सोते समय तत्त्वबोध। नित्य कर्म से निवृत्त होकर जप, ध्यान। एकांत सुविधा का चिंतन-मनन में उपयोग।

यही है त्रिविध सोपानों वाला प्रज्ञा योग। संक्षिप्त होते हुए भी अति प्रभावशाली एवं समग्र है। अपने अस्त- व्यस्त बिखराव वाले साधना क्रम को समेट कर इसी केंद्र  बिंदु पर एकत्रित करना चाहिए। महान के साथ अपने क्षुद्र को जोड़ने के लिए योगाभ्यास का विधान है। प्रज्ञा परिजनों के लिए सर्वसुलभ एवं सर्वोत्तम योगाभ्यास ‘प्रज्ञा योग’ की साधना है। उसे भावनापूर्वक अपनाया और निष्ठापूर्वक निभाया जाए।



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