भावना
आपकी भावनाओं की, विचारों की जो भी प्रकृति हो, पहले इन पर ध्यान देना सीखिए।
![]() सद्गुरु |
देखिए, जब आपको किसी चीज पर ध्यान देना होता है, तो आपको दो अस्तित्वों का निर्माण करना पड़ता है। आपकी भावनाएं केवल तभी बंधन बनती हैं, जब आपके और आपकी भावनाओं के बीच कोई दूरी नहीं होती। वहां आप खुद ही भावना बन जाते हैं। सारी समस्याओं की जड़ यही है। अगर आप ध्यान देना सीख लेंगे तो उनसे दूरी बनाने लगेंगे। अगर आप और आपकी भावनाओं के बीच दूरी हो, आप और आपके विचारों के बीच दूरी हो, आप और आपके शरीर के बीच दूरी हो, तो फिर ये सारी चीजें कोई समस्या नहीं रह जातीं।
आपके पास एक शरीर है, यह कोई समस्या नहीं है, यह शानदार साधन है। आप सोचने के काबिल हैं, यह कोई समस्या नहीं है। जीवन को इतना विकास करने में लाखों वर्ष लगे कि वह सोचने के काबिल बन सके। तो विचार कोई समस्या नहीं है। बल्कि यह महान वरदान है कि हम सोच सकते हैं। आपके विचार क्रेजी हो गए हैं-नहीं आप क्रेजी हो गए हैं, इसलिए विचार एक समस्या लगता है।
आपकी भावनाएं कोई समस्या नहीं हैं, बिना भावनाओं के आप एक सूखी लकड़ी की तरह होंगे। भावनाएं ही हैं, जो जीवन को मधुर और खूबसूरत बनाती हैं। भावनाएं ही हैं, जो जीवन में प्रवाह लाती हैं। लेकिन यही भावनाएं तब समस्या बन जाती हैं, जब आपके नियंत्रण से बाहर जाकर पागलपन का रूप ले लेती हैं। अगर आप भावनाओं पर ध्यान देते हैं, उनके प्रति जागरूक होते हैं, तो आप जैसे-जैसे जागरूक होते जाएंगे, वैसे-वैसे आपके और इनके बीच दूरी बढ़ती जाएगी। देखिए, एक बार अगर दूरी आ गई तो आप बिना शरीर हुए, अपने शरीर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
आप अपने विचार का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन आप विचार नहीं हैं, आप भावुक हो सकते हैं, लेकिन आप भावना नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि तब आप किस तरह की भावना पैदा करेंगे? सबसे मधुर भावनाएं। अगर आप सजगता से अपने विचारों का इस्तेमाल करें तो आप किस तरह के विचार पैदा करेंगे? आप ऐसे विचारों को पैदा करेंगे, जो आपके हित में हों या आपके खिलाफ हों? निश्चित रूप से अपने हित से जुड़े विचारों को ही पैदा करेंगे।
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