सपनों की उड़ान
हर व्यक्ति के अंदर दिव्यता का खजाना छुपा है। इसको खोदकर बाहर निकालने के लिए जरूरी है कि मानसिक हलचलों को सृजनात्मक स्वरूप प्रदान किया जाए।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
ऐसे जीवन दशर्न को प्रोत्साहन देना चाहिए, जो दोनों बातों पर ध्यान रखे। सफलता अनायास ही उत्पन्न नहीं होती, इसे क्रियाशीलता की प्रतिक्रिया कह सकते हैं। यह क्रिया भी अकारण उत्पन्न नहीं होती। उसके पीछे इच्छाशक्ति की प्रबल प्रेरणा काम कर रही होती है।
सोचने भर से चाही वस्तु मिलना संभव नहीं। प्रचंड पुरुषार्थ करने की आवश्यकता पड़ती है। बिना थके, बिना हारे चलते रहने और कठिनाइयों से पग-पग पर जूझने का साहस ही लंबी मंजिल पूरी करा सकने में सफल होता है।
उचित परिश्रम के मूल्य पर ही अनुकूलताएं उत्पन्न होती हैं। उन्हीं के सहारे सफलताओं की संभावनाएं दृष्टिगोचर होती हैं। यह अथक परिश्रम और साहस भरे संकल्पों पर ही निर्भर है। देर तक टिकने वाला और प्रतिकूलताओं से जूझने वाला साहस ही संकल्प कहलाता है। कल्पना से नहीं, संकल्प शक्ति से मनोरथ पूरा करने की परिस्थितियां बनती हैं।
बच्चे भविष्य के मधुर सपने देखने में निरत रहते हैं। बूढ़ों को भूतकाल की स्मृतियों में उलझे रहना सुहाता है, किंतु तरुण को वर्तमान से जूझना पड़ता है। बच्चों को स्वप्नदर्शी कहते हैं। वे कल्पनाओं के आकाश में उड़ते हैं, परियों के साथ खेलते हैं। यहां सपनों का कोई मोल नहीं। संसार के बाजार में पुरुषार्थ से योग्यता भी बढ़ती है, साधन भी जुटते हैं।
इन दुहरी उपलब्धियों के सहारे ही प्रगति के पथ पर दो पहिए की गाड़ी लुढ़कती है। स्वप्नों के पंख लगाकर सुनहरे आकाश में दौड़ तो कितनी ही लंबी लगाई जा सकती है, पर पहुंचा कहीं नहीं जा सकता। ऊंची उड़ान उड़ने की अपेक्षा अच्छा है कि आज की स्थिति का सही मूल्यांकन करें और उतनी बड़ी योजना बनाएं, जिसे आज के साधनों से पूरा कर सकना संभव है। कल साधन बढ़े तो कल्पना का विस्तार करने में कुछ भी कठिनाई नहीं होगी।
गुण-दोषों का, संभव-असंभव, पक्ष-विपक्ष का ध्यान रखते हुए विवेकपूर्ण निर्णय किया जाए। उसे पूरा करने के लिए अटूट साहस और प्रबल पुरु षार्थ के लिए जुटा जाए। इससे विश्वास किया जा सकता है कि सफलता का वृक्ष अपने समय पर अवश्य ही फूलेगा और फल देगा।
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