थकान
खुली धूप, ताजी हवा और अंग संचालन के आवश्यक शारीरिक परिश्रम का अभाव साधन संपन्न लोगों की थकान का मुख्य कारण है।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
आकषर्क लगने वाले दफ्तर वास्तव में खतरनाक हैं। वातानुकूलन, जरा-सी गर्मी में पंखों की तेज चाल-कूलर-खश के पर्दे, बर्फ मिला पानी-जाड़े में हीटर-गरम चाय-ऊनी कपड़ों का कसाव देखने में बड़े आदमी होने का चिह्न लगते हैं, और तात्कालिक सुविधा भी देते हैं पर इनका परिणाम बुरा होता है। त्वचा अपनी सहन शक्ति खो बैठती है।
अवयवों में प्रतिकूलता से लड़ने की क्षमता घट जाती है। ऋतु प्रभाव को सहन न कर पाने से आए दिन जुकाम, खांसी, लू लगना, ताप, सिर दर्द, अनिद्रा, अपच जैसी शिकायतें समाने खड़ी रहती हैं।
सूर्य की किरणों और स्वच्छ हवा में जो प्रचुर परिमाण में जीवन तत्व भरे पड़े हैं, उनसे वंचित रहा जाए तो उसकी पूर्ति ‘विटामिन, मिनिरल और प्रोटीन’ भरे खाद्य पदाथरे की प्रचुर मात्रा भी नहीं कर सकती। म्यूनिख (जर्मनी) की वावेरियन एकेडमी ऑफ लेवर एंड सोशल येडीशन संस्था की शोधों का निष्कर्ष है कि कठोर शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों की अपेक्षा दफ्तरों की बाबूगीरी स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक खतरनाक है।
स्वास्थ्य परीक्षण-तुलनात्मक अध्ययन आंकड़ों के निष्कर्ष और शरीर रचना तथ्यों को सामने रखकर शोध कार्य करने वाली इस संस्था के प्रमुख अधिकारी एरिफ हाफमैन का कथन है कि कुर्सयिों पर बैठे रहकर दिन गुजारना अन्य दृष्टियों से उपयोगी हो सकता है पर स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वथा हानिकारक है। इससे मांसपेशियों के ऊतकों एवं रक्त वाहिनियों को मिली हुई स्थिति में रहना पड़ता है, वे समुचित श्रम के अभाव में शिथिल होती चली जाती हैं। फलत: उनमें थकान और दर्द की शिकायत उत्पन्न होती है।
रक्त के नये उभार में, उठती उम्र में यह हानि उतनी अधिक प्रतीत नहीं होती पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे आंतरिक थकान के लक्षण बाहर प्रकट होने लगते हैं, और उन्हें कई बुरी बीमारियों के रूप में देखा जा सकता है। कमर का दर्द, कूल्हे का दर्द, गर्दन मुड़ने में- कंधा उचकाने में दर्द, शिरा स्फीति, बवासीर, स्थायी कब्ज, आंतों के जख्म, दमा जैसी बीमारियों के मूल में मांसपेशियों और रक्त वाहिनियों की निर्बलता ही होती है, जो अंग संचालन, खुली धूप और स्वच्छ हवा के अभाव में पैदा होती है। इन उभारों को पूर्व रूप की थकान समझा जा सकता है।
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