अहंकार

Last Updated 08 Oct 2021 02:41:35 AM IST

तुमने देखा विनम्र आदमी का अहंकार! वह कहता है, मैं आपके पैर की धूल! मगर उसकी आंख में देखना, वह क्या कह रहा है!


आचार्य रजनीश ओशो

अगर तुम कहो कि आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, हमको तो पहले ही से पता था कि आप पैर की धूल हैं, तो वह झगड़ने को खड़ा हो जाएगा। वह यह कह नहीं रहा है कि आप भी इसको मान लो। वह तो यह कह रहा है कि आप कहो कि आप जैसे विनम्र आदमी के दर्शन हो गए बड़ी कृपा! वह यह कह रहा है कि आप खंडन करो कि ‘आप, और पैर की धूल?

आप तो स्वर्ण-शिखर हैं! आप तो मंदिर के कलश हैं!’ जैसे-जैसे तुम कहोगे ऊंचा, वह कहेगा कि नहीं, मैं बिल्कुल पैर की धूल हूं, लेकिन जब कोई कहे कि मैं पैर की धूल हूं तुम अगर स्वीकार कर लो कि आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, सभी ऐसा मानते हैं कि आप बिल्कुल पैर की धूल हैं, तो वह आदमी फिर तुम्हारी तरफ कभी देखेगा भी नहीं। वह विनम्रता नहीं थी-वह नया अहंकार का रंग था; अहंकार ने नये वस्त्र ओढ़े थे, विनम्रता के वस्त्र ओढ़े थे।

तो तुम अगर ‘मैं’ से छूटने की कोशिश किए, तो यह जो छूटने वाला है, यह एक नये ‘मैं’ को निर्मिंत कर लेगा। आदमी पैरहन बदलता है! कपड़े बदल लिए, मगर तुम तो वही रहोगे।अष्टावक्र की बात समझने की कोशिश करो; जल्दी मत करो कि क्या करें, कैसे अहंकार से छुटकारा हो? करने की जल्दी मत करो; थोड़ा समझने के लिए विश्राम लो। अष्टावक्र यह कह रहे हैं कि ‘मैं’ बनता कैसे है, यह समझ लो-करने से बनता है, चेष्टा से बनता है, यत्न से बनता है, सफलता से बनता है।

तो तुम जहां भी यत्न करोगे, वहीं बन जाएगा। तो फिर एक बात साफ हो गई कि अगर अहंकार से मुक्त होना है तो यत्न मत करो, चेष्टा मत करो। जो है, उसे वैसा ही स्वीकार कर लो। उसी स्वीकार में तुम पाओगे। अहंकार ऐसे मिट गया, जैसे कभी था ही नहीं। क्योंकि उसको जो ऊर्जा देने वाला तत्व था, वह खिसक गया; बुनियाद गिर गई, अब भवन ज्यादा देर न खड़ा रहेगा। और अगर कर्ता का भाव गिर जाए, तो जीवन की सारी बीमारियां गिर जाती हैं; अन्यथा जीवन में बड़े जाल हैं। धन की दौड़ भी कर्ता की दौड़ है। पद की दौड़ भी कर्ता की दौड़ है। प्रतिष्ठा की दौड़ भी कर्ता की दौड़ है। मेरे पास कई लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं कि ऐसा कुछ मार्ग दें कि दुनिया में कुछ करके दिखा जाएं।



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