सत्य

Last Updated 05 Feb 2021 12:06:04 AM IST

जो व्यक्ति आध्यात्मिक उपलब्धियों को पाना चाहते हैं, वे सच्चाई के गुण का आदर करते हैं।




राजिन्दर महाराज

दैनिक जीवन में हमें चुनाव करना होता है कि हम सत्य कहें या झूठ बोलें। कई लोग इस तरह की कश्मकश में रहते हैं कि वो सच की राह पर आगे बढ़ें या झूठ का रास्ता अपनाकर त्वरित फायदा लें। अनेक लोग समझते हैं कि अगर वे झूठ बोलते हैं या दूसरों को धोखा देते हैं तो कभी भी कोई पता नहीं लगा पाएगा और वो इसी तरह झूूठ का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते रहेंगे। एक तरह से कहें तो वह भूलभुलैया में रहते हैं। साथ ही दूसरों को भी मूर्ख समझते हैं। इसलिए, स्वयं के लिए कुछ पाने के लिए या किसी चीज से छुटकारा पाने के लिए, लोग अक्सर झूठ बोल देते हैं। हम यह नहीं समझते कि सत्य हमेशा किसी न किसी प्रकार से प्रकट हो जाता है। जल्दी या देर से, सच बाहर आ जाएगा।

जब हर कार्य-व्यवहार में हम सच्चे रहते हैं तो हमें किसी से भी डरने की और कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं रहती। दूसरे व्यक्ति हमारा आदर करते हैं, हम पर भरोसा करते हैं और जब हम आध्यात्मिक साम्राज्य में पहुंचने की कोशिश करते हैं तो हमारी स्लेट साफ होती है। जब हम झूठ बोलते हैं, तो हमें पहले झूठ को छुपाने के लिए अनेक और झूठ बोलने पड़ते हैं। इतने सारे झूठों को मन में याद रखना बहुत कठिन होता है। जबकि सच एक होता है और याद रखना आसान होता है, झूठ एक उलझा हुआ जाल बुनता है, जिसके हर रेशे को हमें याद रखना पड़ता है। जब हमें डर होता है कि किसी को सच पता लग जाएगा तो शांति से सो पाना मुश्किल होता है।

इस डर से जीने की बजाय कि कोई हमारा झूठ जान जाएगा, बेहतर होगा कि हमस च बोलें और बात वहीं खत्म कर दें ताकि शांति से सो सकें और ध्यान-अभ्यास कर सकें। आध्यात्मिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि मन स्थिर हो, मानसिक उलझनों और मोह से मुक्त हो। झूठ एक अनावश्यक उलझन है जो हमारी एकाग्रता और समय को बर्बाद करती है और हमारे मन की शांति को भंग करती है, जो वापस प्रभु तक जाने के लिए जरूरी है। किसी को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। यह गलत है। झूठ बोलने से पहले पुनर्विचार करके, हम शांति का जीवन जी सकते हैं और प्रभु तक वापस जाने की यात्रा को तेज कर सकते हैं। सभी को ऐसा ही करना चाहिए।



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