मनोयोग

Last Updated 04 Feb 2021 01:57:19 AM IST

जीवन अनेकों समस्याओं के साथ उलझा हुआ है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

उन उलझनों को सुलझाने में, प्रगति पथ पर उपस्थित रोड़ों को हटाने में बहुधा हमारी शक्ति का एक बहुत बड़ा भाग व्यतीत होता है, फिर भी कुछ ही समस्याओं का हल हो पाता है। उस अपूर्णता का कारण है कि हम हर समस्या का हल अपने से बाहर ढूंढ़ते हैं जबकि वस्तुत : वह हमारे शरीर के अंदर ही छिपा रहता है।

हम कोई आकांक्षा करने से पूर्व अपनी सामर्थ्य और परिस्थितियों का अनुगमन करें तो उनका पूर्ण होना विशेष कठिन नहीं है। एक बार के प्रयत्न में न सही, सोची हुई अवधि में न सही, पूर्ण अंश में न सही, आगे पीछे न्यूनाधिक सफलता इतनी मात्रा में तो मिल ही जाती है कि कामचलाऊ संतोष प्राप्त किया जा सके। पर यदि आकांक्षा के साथ-साथ अपनी क्षमता और स्थिति का ठीक अंदाजा न करके बहुत बढ़ा-चढ़ा लक्ष्य रखा गया है, तो उसकी स्थिति कठिन ही है। ऐसी दशा में असफलता एवं खिन्नता भी स्वाभाविक हैं।

पर अपने स्वभाव में आगा पीछा सोचना, परिस्थिति के अनुसार मन चलाने की दूरदर्शिता हो तो खिन्नता से बचा जा सकता है और साधारण रीति से जो उपलब्ध हो सकता है उतनी ही आकांक्षा करके शांतिपूर्वक जीवन यापन किया जा सकता है। अपने स्वभाव की त्रुटियों का निरीक्षण करके उनमें आवश्यक सुधार करने के लिए हम तैयार हो जाएं तो जीवन की तीन चौथाई से अधिक समस्याओं का हल तुरंत हो जाता है। सफलता के बड़े-बड़े स्वप्न देखने की अपेक्षा हम सोच समझ कर कोई सुनिश्चित मार्ग अपनावें और उस पथ पर पूर्ण दृढ़ता एवं मनोयोग के साथ कर्त्तव्य समझ कर चलते रहें तो मस्तिष्क शांत रहेगा, उसकी पूरी शक्तियां लक्ष्य को पूरा करने में लगेंगी और मंजिल तेजी से पास आती चली जाएगी।

समय-समय पर थोड़ी-थोड़ी जो सफलता मिलती चली जाएगी, उसे देखकर हर्ष और संतोष भी मिलता जाएगा और इस प्रकार लक्ष्य की ओर अपने कदम एक व्यवस्थित गति के अनुसार बढ़ते चले जाएंगे। इसके विपरीत यदि हमारा मन बहुत कल्पनाशील है, बड़े-बड़े मंसूबे गांठता और बड़ी-बड़ी सफलताओं के सुनहरे महल बनाता रहता है, जल्दी से जल्दी बड़ी से बड़ी सफलता के लिए आतुर रहता है तो मंजिल काफी कठिन हो जाएगी। जो मनोयोग कार्य की गतिविधि को सुसंचालित रखने में लगाना चाहिए था वह शेखिचल्ली के सपने देखने में उलझा रहता है। उन सपनों को इतनी जल्दी साकार देखने की उतावली होती है कि जितना श्रम और समय उसके लिए अपेक्षित है, वह उसे भार रूप प्रतीत होता है।



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