अनुभव का महत्त्व
हम अपना जीवन भौतिक और बौद्धिक लक्ष्यों को पाने में लगा देते हैं, पर हम अध्यात्म से अनजान रहते हैं।
राजिन्दर महाराज |
जब भौतिक मृत्यु की उफनती लहरें हमारे ऊपर आ जाती हैं तो हममें कोई आध्यात्मिक क्षमता नहीं होती कि हम अपने जीवन के अंत में से आसानी से निकल सकें। जब हमें खबर मिलती है कि हमें एक जानलेवा बीमारी है या अचानक हमें अपनी मृत्यु दिखाई देती है तो हम भयभीत हो जाते हैं। हम कई तरह की आशंकाओं को लेकर चिंतित हो जाते हैं। हमें समझ नहीं आता कि हम क्या करें।
हमने अपना समय जीवन और मृत्यु का सच्चा अर्थ समझने में नहीं लगाया होता है और हम अपने अंत से डर जाते हैं। जिन व्यक्तियों ने ध्यान-अभ्यास के द्वारा आध्यात्मिक धारा में तैरना सीखने में अपना जीवन गुजारा है, उन्हें कोई डर नहीं होता। वे अपने अंत का शांति और निडरता से सामना करते हैं। दरअसल, वो निडर हो जाते हैं। कैसे? वे इसी जीवन में परलोक के जीवन की शान देख चुके होते हैं। वे देहाभास से ऊपर उठने की कला सीख चुके होते हैं और स्वयं परलोक के क्षेत्रों को देख चुके होते हैं।
जब उनका भौतिक अंत आता है तो उन्हें किस बात का डर होगा? जब उनके शरीर की भौतिक नाव डूबने वाली होगी तो उन्हें परलोक में तैरना आता होगा। अधिकतर इंसान भौतिक मृत्यु की सच्चाई की तब तक उपेक्षा करते हैं जब तक कि बहुत देर नहीं हो जाती। वे समझते हैं कि बौद्धिक ज्ञान, धन-संपत्ति, नाम और सत्ता अर्जित करना अधिक महत्त्वपूर्ण है, पर जब मृत्यु पास आती है तो उन्हें अनुभव होता है कि बौद्धिक ज्ञान और सांसारिक जायदाद किसी काम के नहीं हैं।
उस अवसर पर वे पछताते हैं कि उन्होंने आत्मा, परमात्मा और परलोक की जानकारी पाने में अधिक समय क्यों नहीं व्यतीत किया। जो व्यक्ति छोटी उम्र में अध्यात्म की शिक्षा पा लेते हैं, वे भाग्यशाली हैं। वे प्रतिदिन कुछ समय अपने आध्यात्मिक अभ्यास में लगा सकते हैं ताकि वे इसी जीवन में देहाभास से ऊपर उठने की कला में माहिर हो सकें। तैरने के जैसे, इसका अभ्यास करना है। दैनिक ध्यान-अभ्यास से हमारी आध्यात्मिक कुशलता विकसित होगी ताकि हम वहां पर पहुंच सकें, जहां पर हम अंतर के रूहानी मंडलों का अनुभव पा जाएं।
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