प्रदूषण
हमें ज्यादातर चिंता शहरों और उद्योगों आदि से आने वाले प्रदूषण की होती है। मगर लोग इस बात से चूक जाते हैं कि धरती पर सबसे बड़ा खतरा वास्तव में कृषि है।
सद्गुरु |
मिट्टी की गुणवत्ता खराब होना असली समस्या है। बाकी हर चीज को कुछ दशकों में ठीक किया जा सकता है, लेकिन दुनिया भर में मिट्टी की खराब हालत को आप पलट नहीं सकते, उसे ठीक करने में पचास से सौ साल लगेंगे। मिट्टी को सुधारने के सिर्फ दो तरीके हैं। पहला है, पेड़ों की पत्तियां और पशु व मानव के मल। पेड़ बहुत पहले ही नष्ट हो चुके हैं। अगली चीज है, पशुओं का गोबर। पशुओं के गोबर के बिना आप मिट्टी को उपजाऊ नहीं बना सकते। आप थैली भर-भर कर खाद खेतों में डालकर मिट्टी को उपजाऊ नहीं बना सकते। मुख्य रूप से, आध्यात्मिक का मतलब है कि आपका जीवन अनुभव आपके भौतिक अस्तित्व से परे चला गया है।
तो अगर आप इस शरीर से परे खुद का अनुभव करते हैं, तो आपका अनुभव क्या होगा? कुदरती रूप से, यह आपके आस-पास के जीवन ख़्ाुद में शामिल करके देखेगा। जो मैं बाहर छोड़ता हूं, पेड़ उसे अपने अंदर ले रहे हैं, पेड़ जो सांस छोड़ते हैं, मैं अपने जीवन के हर पल में उसे अपने अंदर ले रहा हूं। मगर हम इसके बारे में बिना किसी जागरूकता के जीवन जी रहे हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मकसद इकोलॉजी नहीं है, लेकिन यह हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा है। इकोलॉजी कोई पढ़ने-पढ़ाने का विषय भर नहीं है, वह हमारे अस्तित्व का आधार है। बड़े पैमाने पर लोगों में इस अनुभव को लाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि चाहे आप कितना भी सिखा लें, कितना भी प्रचार कर लें, लेकिन लोग अपने जीवन अनुभव के अनुसार अपने जीवन को आकार देते हैं।
खासकर वे लोग जो जिम्मेदारी के पदों पर और सत्ता में होते हैं, जो दुनिया में अंतर ला सकते हैं, उनका जीवन अनुभव ऐसा होना चाहिए कि वो सबको अपने में शामिल कर सकें। यानी अभी की तुलना में अधिक समावेशी होना चाहिए। मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। सत्ताइस सालों तक मैं अपने होम टाउन वापस नहीं गया। मतलब, मैं अपने परिवार से मिलने जाता था मगर वहां मैंने कोई कार्यक्रम नहीं किया क्योंकि मैं अपने शहर में थोड़ा गुमनाम रहना चाहता था, जो कि हो नहीं पाया..।
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