पानी के स्रोत

Last Updated 26 Jun 2020 04:59:40 AM IST

भारत में एक बड़ी समस्या है कि हर कोई सोचता है कि वह पर्यावरण विशेषज्ञ है, सिर्फ इसलिए कि वह अखबार में एक लेख पढ़ लेता है, या उसने टीवी पर दो मिनट के लिए कुछ देखा है।




जग्गी वासुदेव

अभी, हम प्रदूषण के बारे में चिंतित हैं क्योंकि अमेरिका और यूरोप प्रदूषण के बारे में बात कर रहे हैं। हमें यह बीमारी है कि जो कुछ भी अमेरिका या यूरोप में कहा जाता है, भारतीय उसे दोहराना चाहते हैं। देश में अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के साथ यही एक बड़ी समस्या है। चाहे वह पत्रकार हो या तथाकथित पर्यावरण वैज्ञानिक, उसे सीधी बात समझाने में भी बहुत कठिनाई होती है, क्योंकि उसके दिमाग में हर समय यूरोप और अमेरिका नाचता है। असली समस्या प्रदूषण नहीं है।

हमें समझना चाहिए कि नालों का पानी नदियों में जाना बंद हो जाता है, तो ज्यादातर नदियां नहीं बहेंगी। यमुना को ही लें। उसमें 90 प्रतिशत पानी नालों का है। आप सारे नालों के पानी को रोक दें, तो यमुना नहीं रहेगी। एक उष्णकटिबंध देश की वास्तविकताएं उस देश से बहुत अलग होती हैं, जिसकी जलवायु समशीतोष्ण है। हम जिस अक्षांश पर हैं, और हमारी जिस किस्म की जमीन है, यह बहुत अलग है। बुनियादी रूप से हमें गलतफहमी है कि नदियां पानी का स्त्रोत हैं। नहीं। इस देश में नदी, तालाब, या झील पानी के स्त्रोत नहीं हैं। पानी का स्त्रोत सिर्फ  एक है; मानसून की बारिश। नदियां, तालाब, झील और कुएं पानी का गंतव्य स्थान हैं, स्त्रोत नहीं। हर साल मानसून की बारिश लगभग 3.6 से 4 लाख करोड़ टन पानी बादलों से गिराती है।

जब यह एक हरा-भरा वष्रावन या उष्णकटिबंध वन था, तो हमने इस पानी के ज्यादातर हिस्से को भूजल के रूप में थामे रखा और नदियों, तालाबों, झीलों में धीरे-धीरे रिसकर जाने दिया। तो नदियां बहती रहीं। पिछले सौ सालों में, इस उपमहाद्वीप पर मानसूनी पानी में महत्त्वपूर्ण कमी नहीं आई है। लेकिन ज्यादातर नदियों में पानी औसतन 40 प्रतिशत कम हो गया है। समझने की जरूरत है कि यूरोप की नदियां अधिकतर ग्लेश्यिर से निकलती हैं, या उससे पोषित हैं, जबकि भारत की नदियां जंगलों से पोषित हैं। भारत की सिर्फ  चार प्रतिशत नदियां ग्लेश्यिर से पोषित हैं, यह सिर्फ  ऊपर उत्तर में है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment