आरक्षण

Last Updated 03 Jun 2020 03:23:48 AM IST

अगर देश में दलित विकास के स्तर की बात करें तो मेरा मानना है कि उन्हें अब भी आरक्षण की जरूरत है।


सद्गुरु

लेकिन शायद हमारी आरक्षण नीति पर फिर से विचार करने का यही सही समय है। एक प्रजातंत्र में, सब कुछ चुनाव के आसपास घूमता है। कोई भी बदलाव की बात नहीं करता, भले ही वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, खासतौर पर अगर यह किसी एक खास समुदाय से जुड़ा हो। क्योंकि तब यह चुनाव जीतने या हारने का मसाला बन जाता है।

लेकिन हमें इस काम में और देरी नहीं करनी चाहिए। अगर देश में दलित विकास के स्तर की बात करें तो मेरा मानना है कि उन्हें अब भी आरक्षण की जरूरत है। लेकिन शायद हमारी आरक्षण नीति पर फिर से विचार करने का यही सही समय है। शहरी और देहाती दलितों के बीच एक अंतर रख सकते हैं क्योंकि ज्यादातर भेदभाव और परेशानी देहाती इलाके वाले दलितों को सहन करनी पड़ती है। इसलिए देहाती इलाकों के दलितों को शहरी इलाकों में रहने वालों की तुलना में ज्यादा लाभ और सुविधा दी जानी चाहिए।

शायद पहली पीढ़ी को यह आरक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे उस गड्ढे से बाहर आ सकें जो बदकिस्मती से उनके लिए खोदा गया है। दूसरी पीढ़ी के लिए इसे थोड़ा घटा सकते हैं, तीसरी पीढ़ी तक आते-आते उन्हें इससे पूरी तरह से बाहर आ जाना चाहिए। जो दो पीढ़ियां इस गर्त से बाहर आ चुकी हैं उन्हें अपनी इच्छा से, आरक्षण का लाभ उनको दे देना चाहिए। जो इससे अब तक बाहर नहीं आ सके हैं। यह केवल तभी हो सकता है, जब आपमें एक जिम्मेदारी का भाव हो। ये सुविधाएं इसलिए हैं, क्योंकि एक स्तर पर सामाजिक अन्याय अब भी मौजूद है।

लेकिन अब हमें इन सुविधाओं को एक दूसरे तरह के अन्याय में नहीं बदलना चाहिए। उसके लिए हमें एक अधिक जागरूक समाज की जरूरत होगी। कॉलेज के दाखिले के लिए आरक्षण अब भी जरूरी हो सकता है, पर किसी छात्र को केवल इसलिए पास नहीं किया जाना चाहिए कि वह किसी खास जाति से जुड़ा है। इस तरह आप देश में काबिलियत के स्तर को घटा रहे हैं। उन्हें अवसर दें, उन्हें कोचिंग दें ताकि उनके भीतर अच्छी स्कूली पढ़ाई न मिल पाने के कारण जो कमी रह गई है, वे उसे पूरा कर सकें। लेकिन काबिलियत से समझौता नहीं होना चाहिए।



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