अनाचार

Last Updated 01 Jun 2020 01:02:10 AM IST

आकर्षक लगने वाली सभी वस्तुएं उपयोगी नहीं होतीं। सर्प, बिच्छू, कांतर, कनखजूरे जैसे प्राणी देखने में सुन्दर लगते हैं पर उनके गुणों को देखने पर पता चलता है कि वे समीप आने वाले को कितना त्रास देते हैं?


श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रथम पहचान में ही न किसी का मित्र बनना चाहिए और न किसी को बनाना चाहिए। चरित्र के बारे में बारीकी से देखना, समझना और परखना चाहिए। मात्र शालीनता के प्रति आशा रखने वाले और आदशरे का दृढ़तापूर्वक अवलम्बन करने वाले ही इस योग्य होते हैं कि उनसे घनिष्ठता का संबंध स्थापित किया जाए। बड़ी बात दुर्जनों को समझाकर सज्जनता के मार्ग पर लाना उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उनके गिरोह को छिन्न-भिन्न करने से लेकर घात लगाने की चलती प्रक्रिया में कारगर अवरोध खड़े कर देना। इसके लिए जनसाधारण को साहस जगाने वाला प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, प्रतिरोध कर सकने वाली साहसिक मंडलियों का गठन किया जाना चाहिए और सरकरी तंत्र तक यह आवाज पहुंचाई जानी चाहिए कि उसके भागीदार अधिकारी कर्मचारी उस कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करें जिसके लिए उन्होंने जिम्मेदारी कंधे पर उठाई है।

इस कार्य में उन्हें जहां भी कठिनाई अनुभव हो रही हो, उसे दूर करने के लिए जागरूक नागरिकों को समुचित प्रयत्न करना चाहिए। जनता का साहस, सुरक्षा बलों का पराक्रम और सरकारी तंत्र का समुचित योगदान यदि मिलने लगे तो गुंडागर्दी का उन्मूलन कठिन न रहेगा। हर व्यक्ति अपने को ऐसा चुस्त-दुरु स्त रखे, जिससे प्रतीत हो कि वह किसी भी आक्रमण का सामना करने के लिए तैयार है। यह कार्य प्राय: एकाकी होने पर नहीं बन पड़ता, समूह में अपनी शक्ति होती है।

मिल-जुलकर रहने और एक-दूसरे की क्षमता बनाए रहने पर आधी मुसीबत टल जाती है। निजी हौसला बुलन्द रखने के अतिरिक्त अपने जैसे ही साहसी लोगों का संगठन बना लेना चाहिए और उनके साथ-साथ रहने, साथ-साथ उठने-बैठने के अवसर बनाते रहने चाहिए। बर्र के छत्ते में हाथ डालने में डर लगता है, पर यदि वह अकेली पास आ डटे तो उसका कचूमर निकालने के लिए कोई भी तैयार हो जाता है। बन्दर समूह में रहते हैं और एक को छेड़ने पर दूसरे भी उनकी सहायता को इकट्ठे हो जाते हैं। इस कारण लोग बन्दरों के झुंड को छेड़ते नहीं, उससे बचकर ही निकलने में अपनी भलाई देखते हैं।



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