आत्म निर्माण
मानव जीवन के यापन के अनेक भेद-प्रभेद हैं। उनमें नाना प्रकार के कार्य हैं किंतु एक तत्व प्रत्येक में एक जैसा ही मिलता है। वह है समय का सदुपयोग।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
कुछ का संपूर्ण जीवन खाने-कमाने में ही व्यय होता है। कुछ आमोद-प्रमोद और मनोरंजन प्रधान जीवन को ही सर्वोपरि मानते हैं। किसी का समय ज्ञान की वृद्धि, वृद्धि की प्रखरता, अध्ययन और आत्मोन्नति में बीतता है। वास्तव में हमें यह प्रतीत नहीं कि हमें क्या निर्माण कार्य करना है। जीवन तो दीर्घ है।
पूर्ण जीवन में हमें कोई ऐसा महान कार्य कर डालना है कि हमारी स्मृति सदा सर्वदा के लिए अमिट बनी रहे। हम में से अधिकांश ऐसे हैं, जो कुछ करना चाहते हैं। उनके मन में लगन है, उत्साह और पर्याप्त प्रेरणा है किन्तु उन्हें निर्माण कार्यों का ज्ञान नहीं है। निर्माण कार्य! आप गहराई से सोचिए, संसार में करने के योग्य कितने महत्त्वपूर्ण कार्य आपके निमित्त रखे हैं? आप जीवन तथा समाज के जिस पक्ष की ओर जाएं और निर्माण कार्य मिल जाएंगे, सर्वप्रथम आपको ‘स्व’ अर्थात स्वयं अपना निर्माण करना है। आप कहेंगे हम तो पहले से ही निर्मिंत हैं, हैं, हम अपने क्या बना सकते हैं?
आपके निर्माण के लिए अत्यंत विस्तृत क्षेत्र है। आत्म-निर्माण में सर्वप्रथम अपने स्वभाव का निर्माण है। आपको देखना है कि कौन-कौन-सी दुष्ट आदतें आपको छोड़नी हैं? उनके स्थान पर कौन-कौन-सी शुभ और सात्विक आदतों का विकास करना है? अच्छी आदतों से उत्तम भाव का निर्माण होता है और मनुष्य का दृष्टिकोण बनता है। जैसा दृष्टिकोण होता है, वैसा ही आनंद मनुष्य को प्राप्त होता है।
आपको निम्न आदतें छोड़ देनी चाहिए -निराशावादिता, कुढ़न, क्रोध, चुगली और ईष्र्या। इनका आंतरिक विष मनुष्य को कभी भी पनपने नहीं देता, समाज में निरादर होता है, आंतरिक विद्वेष से मनुष्य निरंतर दग्ध होता रहता है। बात को टालने की एक ऐसी गंदी आदत है, जिससे अनेक व्यक्ति अपना सब कुछ खो बैठे हैं। इनके स्थान पर सहानुभूति, आशावाद, प्रेम, सहनशीलता, संयम की आदतें लोक एवं परलोक, दोनों में मनुष्य को संतुष्ट रखती हैं। हम आत्म निर्माण में अपना समय लगाएं तो हमारा जीवन बहुत ऊंचा उठ सकता है।
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