यौगिक विद्या
यौगिक विद्या में एक सुंदर कहानी के मुताबिक एक व्यक्ति घूमने गया। चलते-चलते स्वर्ग में पहुंच गया।
जग्गी वासुदेव |
बहुत दूर चलने पर उसे थकान महसूस हुई। सोचने लगा, ‘काश! कहीं आराम करने की जगह मिल जाए’। उसे सुंदर वृक्ष दिखाई दिया जिसके नीचे अद्भुत कोमल घास थी। वो वहां जा कर सो गया। सोकर उठा तो सोचा,‘अरे, मुझे भूख लगी है। काश! कुछ खाने को मिल जाए’। उसने उन स्वादिष्ट व्यंजनों के बारे में सोचा जो खाना चाहता था। वह सब भोजन उसके सामने प्रकट हो गया। जब भोजन कर लिया तो उसे ख्याल आया,‘आहा, कुछ पीने को मिल जाए’। उसने उन पेय पदाथरे के बारे में सोचा जो पीना चाहता था और तुरंत वे सब उसके सामने आ गए।
उसने उन भूतों को देखा तो डर गया और बोला,‘अरे, यहां चारों ओर भूत हैं, शायद ये मुझे यातना देंगे’। तो तुरंत उन भूतों ने उसे सताना करना शुरू कर दिया। उसने सोचा,‘अरे ये भूत मुझे तकलीफ दे रहे हैं, जरूर मुझे मार डालेंगे’। योग में मन को मरकट यानी बंदर नाम से भी बुलाते हैं क्योंकि उसका स्वभाव ऐसा है। ‘बंदर’ शब्द नकल करने का पर्यायवाची हो गया है। आप कहते हैं कि आप किसी का बंदर कर रहे तो इसका अर्थ होता है कि आप उसकी नकल उतार रहे हैं। आपका मन हमेशा यही काम करता रहता है तो एक अस्थिर, अशांत, अस्थापित मन को बंदर भी कहते हैं।
तो यह ‘बंदर’ जब उस व्यक्ति में सक्रिय हो गया जो वहां स्वर्ग में मजे ले रहा था तो उसने सोचा,‘ये सब क्या गड़बड़ चल रही है? मैंने जो खाना चाहा, आ गया, जो पीना चाहा, आ गया, शायद यहां चारों ओर भूत हैं’ उसने देखा तो उसे भूत दिखाई दिए। उसने भूतों को देखा तो डर गया और बोला,‘अरे, यहां चारों ओर भूत हैं, शायद मुझे यातना देंगे’ तो तुरंत उन भूतों ने उसे सताना करना शुरू कर दिया। उसने सोचा,‘अरे ये भूत मुझे तकलीफ दे रहे हैं, जरूर मुझे मार डालेंगे’ और वह मर गया। समस्या यह थी कि वह एक कल्पवृक्ष के नीचे बैठा था, जो आप की हर इच्छा पूरी कर देता है। अच्छी तरह स्थापित, स्थिर मन को कल्पवृक्ष कहा जाता है, ऐसे मन से आप जो सोचते हैं, वह हो जाता है। जीवन में आप भी एक ऐसे ही कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हैं तो आप को अपने मन का विकास उस सीमा तक करना चाहिए कि वह कल्पवृक्ष बन जाए, वह पागलपन का स्रोत न बने।
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