मन की शांति
एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। उनके प्रिय शिष्य आनंद ने मार्ग में उनसे एक प्रश्न पूछा-‘भगवान! जीवन में पूर्ण रूप से कभी शांति नहीं मिलती, कोई ऐसा मार्ग बताइए कि जीवन में सदा शांति का अहसास हो’।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
बुद्ध आनंद का प्रश्न सुनकर मुस्कुराते हुए बोले, तुम्हें इसका जवाब अवश्य देंगे किंतु अभी हमें प्यास लगी है, थोड़ा जल पी लें। क्या हमारे लिए थोड़ा जल लेकर आओगे? बुद्ध का आदेश पाकर आनंद जल की खोज में निकला तो थोड़ी दूर पर एक झरना नजर आया। वह जैसे ही करीब पंहुचा तब तक कुछ बैलगाड़ियां वहां आ पहुचीं और झरने को पार करने लगीं। उनके गुजरने के बाद आनंद ने पाया कि झील का पानी बहुत गंदा हो गया था। इसलिए उसने कहीं और से जल लेने का निश्चय किया। जब अन्य स्थानों पर तलाशने पर जल नहीं मिला तो निराश होकर उसने लौटने का निश्चय किया। खाली हाथ लौटने पर जब बुद्ध ने पूछा तो उसने सारी बातें बताई और कहा, फिर से मैं किसी दूसरी झील की तलाश करता हूं, जिसका पानी साफ हो। यह कहकर आनंद जाने लगा तभी बुद्ध बोले-‘दूसरी झील तलाश करने की जरूरत नहीं, उसी झील पर जाओ’।
आनन्द दोबारा उस झील पर गया किंतु अभी भी झील का पानी साफ नहीं हुआ था। कुछ पत्ते आदि उस पर तैर रहे थे। आनंद दोबारा वापस आकर बोला, झील का पानी अभी भी गंदा है। बुद्ध ने कुछ देर बाद उसे वहां जाने को कहा। थोड़ी देर ठहर कर आनंद जब झील पर पहुंचा तो झील का पानी बिल्कुल साफ हो चुका था। काई सिमट कर दूर जा चुकी थी, और पानी आईने की तरह चमक रहा था। आनंद प्रसन्न होकर जल ले आया जिसे बुद्ध पीकर बोले, आनंद जो क्रियाकलाप अभी तुमने किया, तुम्हारा जवाब इसी में छुपा हुआ है। बुद्ध बोले-हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाड़ियां रोज गंदा करती रहती हैं, हमारी शांति भंग करती हैं। कई बार तो हम इनसे डर कर जीवन से ही भाग खड़े होते हैं किंतु हम भागें नहीं और मन की झील के शांत होने की थोड़ी प्रतीक्षा कर लें तो सब कुछ स्वच्छ और शांत हो जाता है। ठीक उसी झरने की तरह जहां से तुम ये जल लाए हो। हम ऐसा करने में सफल हो गए तो जीवन में सदा शांति के अहसास को पा लोगे।
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