मन

Last Updated 18 Nov 2019 12:05:44 AM IST

संतुलित मस्तिष्क की पहचान यह नहीं है कि वह शिथिलता, निष्क्रियता अपनाये और संसार को माया मिथ्या बताकर बे सिर-पैर उड़ाने उड़ने लगें।


श्रीराम शर्मा आचार्य

विवेकवान उद्विग्नता छोड़ने पर पलायन नहीं करते। वे कर्तव्य क्षेत्र में अंगद की तरह अपना पैर इतनी मजबूती से जमाते हैं कि असुर समुदाय पूरी शक्ति लगाकर भी उखाड़ने में सफल न हो सके। पल्रोभनों और दबावों से जो उबर सकता है, उसी के लिये यह सम्भव है कि उत्कृष्टता को वरण करे और आंधी-तूफानों के बीच भी अपने निश्चय पर चट्टान की तरह अडिग रहे। इसके लिए उदाहरण, प्रमाण ढ़ूंढ़ने हों, साथी, सहचर, समर्थक ढ़ूंढ़ने हों तो इर्द-गिर्द नजर न डालकर महामानवों के इतिहास तलाशने पड़ेंगे।

अपने समय में या क्षेत्र में यदि वे दिख न पड़ते हो तो भी निराश होने की आवश्यकता नहीं। इतिहास में उनके अस्तित्व और वर्चस्व को देखकर अभीष्ट प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है और विश्वास किया जा सकता है कि महानता का मार्ग ऐसा नहीं है, जिस पर चलने से यदि लालची सहमत न हो तो छोड़ देने की बात सोची जाने लगे। वैभववानों की एक अपनी दुनिया है। किन्तु सोचना यह नहीं चाहिए कि संसार इतना ही छोटा है। इसमें एक क्षेत्र ऐसा भी है जिसे स्वर्ग कहते हैं। उसमें सत्प्रवृत्तियों का वर्चस्व है और अपनाने वाले जो भी उसमें बसते हैं, देवोपम स्तर का वरण करते हैं। दैत्यों के संसार में सोने की लंका बनाने और दस सिर जितनी चतुरता और बीस भुजाओं जैसी बलिष्ठता हो सकती है, किन्तु उतना ही सब कुछ नहीं हैं।

भागीरथों, हरिश्चंद्रों, प्रह्लादों और दधीचियों जैसी भी एक बिरादरी है। बुद्ध, चैतन्य, नानक, कबीर, रैदास, गांधी, विनोबा जैसे अनेकों ने उसमें प्रवेश पाया है। दयानन्दों और विवेकानन्दों का भी अस्तित्व रहा है। संख्या की दृष्टि से कमी पड़ते देखकर किसी को भी मन छोटा नहीं करना चाहिए। समूचे आकाश में सूर्य और चन्द्र जैसी प्रतिभाएं अपने पराक्रम से संव्याप्त अन्धकार से निरन्तर लड़ती रहती हैं। हार मानने का नाम नहीं लेती। समुद्र में मणि मुक्तक तो जहां-तहां ही होते हैं, सीपों और घोंघों से ही उसके तट पटे पड़े रहते हैं। बहुसंख्यकों को बुद्धिमान अथवा अनुकरणीय मानना हो तो फिर उद्विजों की बिरादरी को वरिष्ठता देनी पड़ेगी। यह बहुमत वाला सिद्धान्त मनुष्य समाज पर लागू नहीं हो सकता। श्रेष्ठता ही सदैव जीतती रही है, श्रेय पाती रही है। हमें अपनी दृष्टि नाव के मस्तूल पर, प्रकाश स्तम्भ पर रखनी चाहिए।



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