जागरूकता
अगर आप जागरूकता के साथ सोना चाहते हैं तो आप को अपने शरीर का कोई भाव नहीं होना चाहिए।
जग्गी वासुदेव |
जब आपकी शरीर के रूप में पहचान पूरी तरह से टूट जाए, तभी आप जागरूकता के साथ सो सकेंगे। हम जब जागते हैं तब हम होश में होते हैं लेकिन हमारी ऊर्जा कई तरह से काम पर लगी होती हैं। हमें बैठना होता है, बोलना होता है, कुछ न कुछ काम करना होता है। लेकिन यदि मैं जागरूकता के साथ सोता हूं तो मेरी ऊर्जा पूरी तरह से एकत्रित रहती हैं। और मैं चेतन भी होता हूं।
तो इसका अर्थ ये है कि मैं अपनी कार्यक्षमता के शिखर पर होता हूँ। अत: जब शिव कहते हैं,‘अगर आप मुश्किल में हैं तो मैं सो जाऊंगा’ तो इसका अर्थ ये है,‘मैं तुम्हारे लिए सबसे अच्छा प्रयत्न करूंगा, सर्वोत्तम काम करूंगा’, क्योंकि उस समय वे अपनी सर्वोत्तम अवस्था में होते हैं। आप में से जिन लोगों को शून्य ध्यान में दीक्षित किया गया है, उनको कभी कभी, यहां वहां कुछ ऐसे क्षणों का अनुभव हुआ होगा जिन्हें हम योग में सुषुप्ति अवस्था कहते हैं-जिसका अर्थ है गहरी नींद सोना पर बिल्कुल जागृत रहना।
जिस दिन आप के लिए ये सुषुप्ति अवस्था बस दो या तीन सेकेंड भी टिक जाए तो फिर रात को आप सो नहीं सकेंगे, आप एकदम होश में रहेंगे, शानदार और सचेत। जब आपने शरीर के रूप में अपनी पहचान नहीं बनाई है, सिर्फ तभी आप के लिए जागरूकता के साथ सोने की संभावना बनेगी। एक बार एक कछुए का छोटा बच्चा बहुत प्रयत्न के साथ, धीरे-धीरे, एकदम ध्यान से, सही ढंग से 24 घंटे का समय ले कर पेड़ पर चढ़ा, फिर एक डाल से कूद गया और सीधा जमीन पर आ गिरा। फिर से अगले 24 घंटों में रेंगते हुए चढ़ा, फिर कूदा और जमीन पर आ गिरा।
बार-बार यही होता रहा। चार दिनों के बाद सामने के पेड़ पर बैठे दो पक्षियों में से एक बोला,‘मुझे लगता है कि अब हमें उसे बता देना चाहिए कि वह हमारी गोद ली हुई संतान है’। तो मुझे भी लगता है कि मैं आप को बता दूं,‘होशपूर्वक सोने के लिए प्रयत्न करना जरूरी है पर ये पर्याप्त नहीं है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने और अपने भौतिक स्वभाव के बीच एक फासला बनाना होगा।
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