चार बातें ज्ञान की
एक राजा के विशाल महल में एक सुंदर वाटिका थी,जिसमें अंगूरों की एक बेल लगी थी।
![]() रीराम शर्मा आचार्य |
वहां रोज एक चिड़िया आती और मीठे अंगूर चुन-चुनकर खा जाती और अधपके और खट्टे अंगूरों को नीचे गिरा देती। माली ने चिड़िया को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर वह हाथ नहीं आई। हताश होकर एक दिन माली ने राजा को यह बात बताई।
यह सुनकर राजा भानुप्रताप को आश्चर्य हुआ। उसने चिड़िया को सबक सिखाने की ठान ली और वाटिका में छिपकर बैठ गया। जब चिड़िया अंगूर खाने आई तो राजा ने तेजी दिखाते हुए उसे पकड़ लिया। फिर जब राजा चिड़िया को मारने लगा, तो चिड़िया ने विनती करते हुए कहा- हे राजन ! मुझे मत मारो। मैं आपको ज्ञान की 4 महत्त्वपूर्ण बातें बताऊंगी।’
राजा ने कहा, ‘समय मत बर्बाद करो मेरा और जो भी बताना है जल्दी बता।’चिड़िया बोली, ‘हे राजन! सबसे पहले, तो हाथ में आए शत्रु को कभी मत छोड़ो।’ राजा ने कहा, ‘दूसरी बात बता।’ चिड़िया ने कहा, ‘असंभव बात पर भूलकर भी विश्वास मत करो और तीसरी बात यह है कि बीती बातों पर कभी पश्चाताप मत करो।’ राजा ने कहा, ‘अब चौथी बात भी जल्दी बता दो।’ इस पर चिड़िया बोली,‘चौथी बात बड़ी गूढ़ और रहस्यमयी है। मुझे जरा ढीला छोड़ दें क्योंकि मेरा दम घुट रहा है। कुछ सांस लेकर ही बता सकूंगी।’
चिड़िया की बात सुन जैसे ही राजा ने अपना हाथ ढीला किया, चिड़िया उड़ कर एक डाल पर बैठ गई और बोली, ‘मेरे पेट में दो हीरे हैं।’ यह सुनकर राजा पश्चाताप में डूब गया। राजा की हालत देख चिड़िया बोली, ‘हे राजन! ज्ञान की बात सुनने और पढ़ने से कुछ लाभ नहीं होता, उस पर अमल करने से होता है। आपने मेरी बात नहीं मानी। मैं आपकी शत्रु थी, फिर भी आपने पकड़कर मुझे छोड़ दिया। मैंने यह असंभव बात कही कि मेरे पेट में दो हीरे हैं।
फिर भी आपने उस पर भरोसा कर लिया। आपके हाथ में वे काल्पनिक हीरे नहीं आए, तो आप पछताने लगे। उपदेशों को आचरण में उतारे बगैर उनका कोई मोल नहीं। कहानी कहती है कि ज्ञान तभी सार्थक है और फलदायी है, जब तक कि उस पर आचरण किया जाए। यही अधिकतर मनुष्य नहीं कर पाते।
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