ब्रह्मांड
आप अगर अपने आसपास के जीवन के प्रति संवेदनशील हैं, तो आप को पता लग सकता है कि वे क्या कह रहे हैं।
![]() जग्गी वासुदेव |
उससे भी ज्यादा, अगर आप इस जीवन के प्रति संवेदनशील हैं, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं तो सृष्टि की रचना के समय से अब तक जो कुछ हुआ है वह सब इसी भौतिक शरीर में है क्योंकि ये शरीर अपने आप में एक छोटा ब्रह्मांड है-यही कारण है कि इसे ‘माइक्रोकोस्म’ भी कहा जाता है।
बड़ा ब्रह्मांड बस इसका ही एक बड़ा किया हुआ रूप है-संपूर्ण ब्रह्मांड में जो कुछ भी हुआ है, वह सब अत्यंत सूक्ष्म रूप से, यहां हुआ है और अभी भी हो रहा है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं कि यह अभी भी हो रहा है? इसका कारण यह है कि ‘सृष्टि की रचना हुई’ यह विचार ही बचकाना है, और यह भी कि यह रचना 6-7 दिनों में हुई। वास्तव में ‘सृष्टि की रचना हुई’ ऐसी कोई बात ही नहीं है। यह ऐसी चीज नहीं है जो हो चुकी हो, यह तो हमेशा ही हो रही है, इसकी रचना होना एक निरंतर प्रक्रिया है।
समय का विचार भी एक बचपने का विचार है। ‘दस लाख साल पहले’ जैसी कोई बात नहीं है। जो भी अस्तित्व को निकट से, अत्यंत ध्यानपूर्वक देखेगा, उसके लिए सब कुछ अभी ही है, सब कुछ यहीं है। तो ये ‘यहीं’ कहां है? क्या ये वहां है जहां आप अभी बैठे हुए हैं? नहीं! ये आप के अंदर है क्योंकि वही एक स्थान है, जो आप की जानकारी में है, आप के लिए खुला हुआ है।
और कोई भी चीज, कभी भी आपकी जानकारी में नहीं आई है। यदि आप चीजों को वैसा ही देखना चाहते हैं जैसी वे हैं, न कि जैसी आप को आप की आंखों से दिखती हैं, तो इसके लिए बहुत सारा काम करना पड़ेगा। तो कर्म एक सरल, सीधा शब्द नहीं है। हम जब कहते हैं कि ये आप का कर्म है तो इसका अर्थ यह है कि ‘बिग बैंग’ भी आप का कर्म है। सृष्टि की रचना का आरंभ भी आप का ही किया हुआ है क्योंकि वह भी आप के भीतर है। हर चीज उसमें हुई है, जिसे हम चेतना कहते हैं, और यह आप के लिए कोई अज्ञात वस्तु नहीं है, कोई विदेशी पदार्थ नहीं है-यह आप का आधार है। तो, सृष्टि की रचना की शुरु आत भी आप ही हैं।
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