अहंकार

Last Updated 10 Oct 2019 12:39:23 AM IST

साधन सम्पन्न का पतन होते ही समाज में उसकी असहनीय अप्रतिष्ठा होने लगती है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

लोग पहले जितना उसका मान सम्मान और आदर सत्कार किया करते थे, उसी अनुपात से अवमानना करने लगते हैं। आदर पाकर अपमान मिलने पर कितनी पीड़ा कितना दुख और कितना आत्म संताप मिलता होगा, इसको तो कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है। अहंकार भयानक शत्रु के समान होता है। इससे क्या रिक्त और क्या सम्पन्न सभी व्यक्तियों को सावधान रहना चाहिए। यह जिसको अपने वश में कर लेता है, उसे सदा के लिए नष्ट कर डालता है। प्रकट अहंकार की हानियां तो प्रकट ही है। गुप्त अहंकार भी कम भयानक नहीं होता।

बहुत लोग चतुरता के बली पर समाज में अपने अहंकार को छिपाये रहते हैं। ऊपर से बड़े विनम्र और उदार बने रहते हैं, किन्तु अन्दर ही अन्दर उससे पीड़ित रहा करते हैं। ऐसे मिथ्या लोग उदारता दिखलाने के लिए कभी-कभी परोपकार और परमार्थ भी किया करते हैं।

दान देते समय अथवा किसी की सहायता करते समय बड़ी निस्पृहता प्रदर्शित करते हैं, किन्तु अन्दर ही अन्दर लोकप्रियता, प्रशंसा और प्रकाशन के लिए लाभान्वित बने रहते हैं। कई बार तो जब उनकी यह कामना, आकांक्षा अपूर्ण रह जाती है, उतनी लोकप्रियता अथवा प्रशंसा नहीं पाते, जितनी कि वे चाहते हैं, तो वे अपने परोपकार परमार्थ अथवा दानपुण्य पर पश्चाताप भी करने लगते हैं और बहुधा आगे के लिए अपनी उदारता का द्वार ही बन्द कर देते हैं।

ऐसे मानसिक चोर अहंकारियों को अपने परमार्थ का भी कोई फल नहीं मिलता। परमार्थ कार्यों में अहंकार का समावेश अमृत में विष और पुण्य में पाप का समावेश करने के समान होता है। वैसे तो अहंकारी कदाचित ही उदार अथवा पुण्य परमार्थी हुआ करते हैं। पाप का गट्ठर सिर पर रखे कोई पुण्य में प्रवृत्त हो सकेगा-यह सन्देहजनक है। स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए रोगी को पहले रोग से मुक्त होना होगा। रोग से छूटने से पहले ही यदि वह स्वास्थ्यवर्धक व्यायाम में प्रवृत्त हो जाता है तो उसका मन्तव्य पूरा न होगा। लोक-परलोक का कोई भी श्रेय प्राप्त करने में अहंकार मनुष्य का सबसे विरोधी तत्व है। लौकिक उन्नति अथवा आत्मिक प्रगति पाने के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों में अहंकार का त्याग सबसे प्रमुख प्रयत्न है। 



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