मानवीय ढांचा
मूल रूप से आप जिसे ‘मैं’ कहते हैं, जिसे आप मानवीय ढांचे के रूप में देखते हैं वह एक खास सॉफ्टवेयर का काम है।
जग्गी वासुदेव |
आज हम जानते हैं कि सॉफ्टवेयर का अर्थ है -याददाश्त, स्मृतियां। चाहे वह व्यक्तिगत मानवीय शरीर हो या विशाल ब्रह्मांडीय शरीर, सब कुछ मूल रूप से पांच तत्वों से बना है-मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश। और इन पांच तत्वों की भी अपनी अलग स्मृति है। यही कारण है कि वे एक विशेष ढंग से व्यवहार करते हैं। बस एक विचार या भावना के साथ आप पानी की रासायनिक संरचना को बदले बिना, उसकी आण्विक संरचना को बदल सकते हैं। बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के, वही पानी विष भी बन सकता है और जीवन का अमृत भी। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार की स्मृति अपने साथ ला रहा है। वह जो कल मिट्टी थी, आज हमारा भोजन बन जाती है। कल जो भोजन था, वह मनुष्य बन जाता है। वही भोजन वापस मिट्टी बन जाता है। तो यह क्या और कैसे हो रहा है? मिट्टी किस तरह से एक फल, फूल या कुछ और चीज बन जाती है? ये सिर्फ बीज में मौजूद स्मृति (याददाश्त) की वजह से होता है।
कैसे कोई अपने पिता या अपनी मां की तरह दिखता है? ये बस वो स्मृति है जो उस एक कोशिका में होती है और आगे बढ़ती है। सामग्री वही है-बस वही पांच तत्व। लेकिन ये स्मृति है जो आगे बढ़ती है और मिट्टी को भोजन और भोजन को मनुष्य बनाती है। और बस एक विचार के साथ, एक भावना के साथ और अपनी ऊर्जाओं पर कुछ खास नियंत्रण के साथ आप इस स्मृति, याददाश्त पर उस हद तक जबरदस्त प्रभाव डाल सकते हैं कि इसके बारे में सब कुछ बदल जाएगा।
आज ऐसे बहुत सारे वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं जो दिखाते हैं कि बस एक विचार या भावना के साथ आप पानी की रासायनिक संरचना को बदले बिना, उसकी आण्विक संरचना को बदल सकते हैं। बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के, वही पानी विष भी बन सकता है और जीवन का अमृत भी। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें किस प्रकार की स्मृति है। हमारी दादी-नानी हमें बताती थीं कि हमें हर किसी के हाथ से पानी या भोजन नहीं ले लेना चाहिए-हमें ये सिर्फ उन लोगों के हाथ से लेना चाहिए जो हमें प्रेम करते हैं, परवाह करते हैं।
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