महत्त्वाकांक्षा
जिंदगी में प्रत्येक व्यक्ति के भीतर, उसके व्यक्तित्व के भीतर कुछ होने की संभावना है।
आचार्य रजनीश ओशो |
प्रत्येक के भीतर! और जिस दिन भी दुनिया में गैर-महत्त्वाकांक्षी समाज होंगे, उस दिन दुनिया में बहुत लोग प्रफुल्लता को उपलब्ध होंगे, आनंद को उपलब्ध होंगे, प्रसन्नता को उपलब्ध होंगे। वह जो काम..जो उनके भीतर था, जो निकलेगा और अभिव्यक्ति होगी तो वे कुछ खिलेंगे। जैसे हर फूल खिल जाता है तो एक खुशी और सुवास देने लगता है। लेकिन मनुष्य-जाति में बहुत कम फूल खिलते हैं। खिल ही नहीं सकते। महत्त्वाकांक्षा ने सारी जड़ें तोड़ डाली हैं। आप अपने बच्चों को प्रेम करते हैं तो एक कृपा करना, उनको महत्त्वाकांक्षा मत सिखाना।
इससे बड़ी शत्रुता और कोई नहीं हो सकती कि कोई मां-बाप अपने बच्चों को महत्त्वाकांक्षा सिखाए क्योंकि महत्त्वाकांक्षा उनके जीवन को जहर की भांति नष्ट कर देगी और यह जहर अंतिम रूप में राजनीति में प्रकट भी हो रहा है। एक नये मनुष्य को जरूर ही पैदा होना चाहिए क्योंकि जीवन बहुत बोझिल और दुखी है। और वह नया मनुष्य किसी बिल्कुल नये आधारों पर विकसित हो सकता है। इन पुरानी परिपाटियों पर नहीं, इन लीकों पर नहीं जो अब तक चलती रही हैं। ये सारी लीकें खतरनाक हैं, और टूट जानी चाहिए, और ये सारी कड़ियां जला देने योग्य हैं।
और मनुष्य का अतीत शुभ नहीं रहा है, सुंदर नहीं रहा है; लेकिन उसका भविष्य सुंदर हो सकता है। लेकिन आकस्मिक रूप से नहीं हो जाएगा यह। यह कोई नियति नहीं है कि अपने आप हो जाएगा। कोई आकाश के ऊपर से आदेश नहीं आएंगे कि अब सब ठीक हो जाएगा। हमें बहुत कुछ बदलाहट करनी होगी। मनुष्य के चित्त को जिन ईटों से हम बनाते हैं, वे बदलनी होंगी। मनुष्य को जो हम ढांचे देते हैं, वे बदलने होंगे। और अगर एक सुंदर और स्वस्थ भविष्य लाना है तो हमें पूरी-पूरी परंपराएं फिर से विचार कर लेनी होंगी।
उनमें बहुत कुछ कचरा है जो जला देने योग्य है, बहुत कुछ गलत है, बहुत कुछ बीमार है, जो नष्ट कर देने योग्य है। और जब तक इतना विद्रोह और विचार नहीं है तब तक हम इसी कोल्हू के बैल की भांति अपने बच्चों को भी पेरेंगे, उनके बच्चों को वे पेरेंगे। और दुनिया में एक अद्भुत बीमारी, महारोग चल रहा है हजारों साल से, जो शायद आगे भी चलता रहेगा। इसे तोड़ने के लिए कुछ चिंतन और विचार आवश्यक है।
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