धर्म

Last Updated 02 Sep 2019 05:16:54 AM IST

संसार में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, ताओ, कन्फ्यूशियस, जैन, बौद्ध, यहूदी आदि विभिन्न नामों से प्रचलित धर्म-सम्प्रदायों पर दृष्टिपात करने से यही पता चलता है कि उनके बाह्यस्वरूप एवं क्रिया-कृत्यों में जमीन-आसमान जितना अंतर है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

यह अंतर होना उचित भी है, क्योंकि जिस वातावरण, जिन परिस्थितियों में वे पनपे और फैले है, उनकी छाप उन पर पड़ना स्वाभाविक है। मनीषी, अवतारी, महामानवों ने देश काल, परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए श्रेष्ठता-संवर्धन एवं निकृष्टता-निवारण के लिए जो सिद्धान्त एवं आचार शास्त्र विनिर्मिंत किए, कालान्तर में वे ही धर्म-सम्प्रदायों के नाम से पुकारे जाने लगे। इस कारण उनके बाह्य कलेवर में विविधता होना स्वाभाविक है। फिर भी, जहां तक मौलिक सिद्धान्तों की बात है, वह सभी तथाकथित धर्मो में एक ही है।

सभी ने एक सार्वभौम सत्ता के साथ तादात्म्य स्थापित करना, मानव का अंतिम लक्ष्य स्वीकार किया है। सभी प्रचलित धर्मो में ‘प्रार्थना’ को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया एवं अपने दैनिक क्रिया-कृत्यों में सम्मिलित किया गया है। अमेरिका के विख्यात साइक्रियेटिस्ट डॉ. बिल्र के अनुसार-‘कोई भी व्यक्ति, जो वास्तव में धार्मिंक है, मनोरोगों का शिकार नहीं हो सकता।’ मन:चिकित्सकों एवं मनोविश्लेषकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि धार्मिंक कर्मकाण्डों में जो प्रार्थना की जाती है।

प्रसिद्ध विचारक डेल कारनेगी ने लिखा है- ‘जीवन की जटिलताओं और विषमताओं से संघर्ष करके सफलता पाने में कोई भी व्यक्ति अकेले समर्थ नहीं है, आस्था और विश्वास के साथ इस संघर्ष में विजय प्राप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाए।’ मौलाना रूम ने कहा है- ‘रूह की दोस्ती इल्म और ईमान से है, उसके लिए हिंदू, मुस्लिम, ईसाई आदि में कोई फर्क नहीं है।’

प्रसिद्ध ईसाई धर्मोपदेशक जस्टिन ने कहा है- ‘जितनी भी श्रेष्ठ विचारणाएं हैं, वे चाहे किसी भी देश या धर्म की हों, सब मनुष्यों के लिए ईश्वरीय निर्देश की तरह हैं।’ शिव महिमा में उल्लेख है-जिस प्रकार बहुत सी नदियां भिन्न-भिन्न प्रकार से घूमकर अंतत: समुद्र में ही जाकर गिरती हैं, उसी प्रकार मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार अलग-अलग धर्म, पंथों से चलकर उसी एक ईश्वर तक पहुंचते हैं। इंजील ने लिखा है- ‘मनुष्य के नथुनों में जितने ास आते हैं, उतने ही ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते हैं।’



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