आर्थिक जरूरतें
सामान्य रूप से, लोग आर्थिक जरूरतों के लिए काम करते हैं।
![]() जग्गी वासुदेव |
अगर आप अपने काम को, चाहे वो जो भी हो, पूरे जुनून के साथ करते हैं, तो अलग बात है, मगर अधिकतर लोग आर्थिक लाभ के लिए ही काम करते हैं। तो अगर किसी परिवार में आर्थिक कारणों से महिलाएं बाहर जा कर काम करती हैं या घर से ही आर्थिक गतिविधि में लगी हैं, तो ये बिल्कुल ठीक है। प्रश्न यह नहीं है कि आप को काम करना चाहिए या नहीं, प्रश्न यह है कि आप को उसकी जरूरत है या नहीं?
आवश्यकता आर्थिक के बजाय सामाजिक हो जाती है, तो मुझे नहीं लगता कि हर एक स्त्री को बाहर जा कर काम करना जरूरी है। दुनिया में इतनी अधिक तकनीकें विकसित करने के पीछे का विचार यही है कि हम ऐसी दुनिया बनाएं जहां न पुरु षों को और न ही महिलाओं को काम करना पड़े। लेकिन बहुत से लोग इसलिए काम करते हैं कि उनके लिए काम करना मजबूरी है, काम किए बिना वे नहीं रह सकते। उन्हें पता ही नहीं होता कि वे अपने साथ और क्या करें। यह होने का एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण तरीका है।
महिलाओं की बात करें तो पिछले 40-50 वर्षो से यह बात जोर पकड़ती जा रही है कि हर स्त्री को काम करना चाहिए। यह इसलिए हुआ है कि स्त्रियों की पुरु षों पर आर्थिक निर्भरता के कारण कुछ हद तक पुरुषों ने उनका शोषण किया है। इसकी प्रतिक्रिया के तौर पर महिलाओं को लगा कि काम पर जाना और पैसा कमाना ही इसका रास्ता है। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ ही परिवारों में इस तरह का शोषण होता है, बहुत सारे परिवारों के लिए यह सच नहीं है। यह विचार कि आप एक सच्ची स्त्री तभी हैं जब आप पैसा कमाती हों, पुरु षों के दिमाग से उधार लिया गया है।
स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर महिलाओं ने पुरु षों के मूल्यों को अपना लिया है और यह वास्तव में गुलामी है। अगर वह स्वतंत्र होना चाहती है तो उसे पुरु षों के मूल्यों को नहीं अपनाना चाहिए। देखना चाहिए कि वह स्त्रीत्व को कैसे फूल की तरह खिलाए इस धरती पर उसके अस्तित्व से कैसे खुशबू फैले? यह कुछ ऐसा है जो सिर्फ स्त्री ही कर सकती है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव में मेरी मां कभी काम करने बाहर नहीं गई और मेरे पिता ने भी यह कभी नहीं सोचा होगा कि वो काम करेंगी। लेकिन क्या वो कोई बेकार व्यक्ति थी? बिल्कुल नहीं।
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