चेतना
चेतना का अर्थ यह नहीं है कि आप खुद के बारे में सचेत रहें। खुद के प्रति सचेत रहना एक बीमारी है, और अचेत होना मृत्यु।
![]() जग्गी वासुदेव |
चेतन होने का मतलब यह है कि आप अपने मूल से जुड़े रहते हैं। आप जिसे चेतना कहते हैं, वह कोई कार्य, कोई विचार या गुण नहीं है- यह तो सृष्टि का आधार है। अगर हम कहते हैं कि आप की चेतना बढ़ गई है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपने जर्मन शेर्पड (कुत्ते) से ज्यादा सतर्क हो गए हैं।
चेतना दिमाग की नहीं होती, लेकिन अगर चेतना जागृत है तो मन स्पष्ट हो जाता है। यह आपके मन और शरीर के माध्यम से, आपकी हर एक कोशिका से, शक्तिशाली रूप से अभिव्यक्त होती है। चेतना इसलिए नहीं होती, कि आप कुछ कर रहे हैं, ये बस इसलिए होती है कि आप ने इसे होने दिया है। आप का जीवन भी चल रहा है, लेकिन आप कुछ भी नहीं कर रहे। हम जिसे चेतना कहते हैं, वह आप के जीवन और अस्तित्व का आधार है।
यह कोई ऐसी बात नहीं है जो आप किसी खास समय पर कर सकते हैं या किसी खास समय पर नहीं कर सकते। चेतना तो तब भी है, जब आप इस शरीर में है या बिना शरीर के हैं। प्रश्न सिर्फ यह है कि वह आप को उपलब्ध है या नहीं? आप हमेशा चेतना के लिए उपलब्ध होते हैं, आप उससे बच नहीं सकते, पर क्या वह आप को उपलब्ध है?
चेतना हमेशा आप के जीवन में प्रभाव डालती है। प्रश्न यह है कि क्या आप की पहुंच चेतना तक है? आपके इस पहुंच से दूर रहने का कारण यह है कि अगर आप इस तक पहुंच बना लेते हैं तो ‘आप’ गायब हो जाएंगे, ‘आप’ का अस्तित्व नहीं रहेगा। आप के पास न गर्व रहेगा, न शर्म रहेगी, न दर्द न सुख। लेकिन आप वह सब कर सकेंगे जो आप करना चाहते हैं।
देखिये, मैं वह सब कर रहा हूं जो मैं करना चाहता हूं, पर वास्तव में, मैं कुछ भी नहीं कर रहा! आप के पास जीवन में बड़ी सफलताएं नहीं होंगी और आप अपने अंदर, किसी दूसरे की अपेक्षा न बेहतर होंगे न बदतर। आप न ऊपर जाएंगे न नीचे, लेकिन आप वह सब कर सकेंगे जो आप चाहते हैं। आप अपने जीवन में हर अनुभव पा सकेंगे। अगर मैं चाहूं, मैं अपने आप को बहुत दुखी बना सकता हूं, या फिर अपने आप को अति आनंदित बना सकता हूं, लेकिन दोनों ही अवस्थाओं में मैं जानता हूं कि यह मेरी ही बनाई हुई हैं।
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