स्वभाव

Last Updated 02 Jul 2019 05:42:58 AM IST

एक ब्राह्मण दार्शनिक भगवान के पास आया और बोला हे गौतम! आप अपने शिष्यों को भिक्षाटन करने से भिक्षु कहते हैं। मैं भी भिक्षाटन करता हूं।


आचार्य रजनीश ओशो

अत: मुझे भी भिक्षु कहिए। वह किसी भी बहाने उलझने को तैयार था। शब्दों पर उसकी पकड़ थी। सो, उसने भिक्षु शब्द से ही विवाद को उठाने की सोची। भगवान ने उससे कहा, ब्राह्मण भिक्षाटन मात्र से कोई भिक्षु नहीं होता; भिखारी चाहो तो मान ले सकते हो। पर भिखारी और भिक्षु पर्यायवाची नहीं हैं।

मैं भिक्षु उसे कहता हूं जिसने सब संस्कार छोड़ दिए। जिसको जीसस ने पुअर इन स्टिट कहा है। ब्लेस्ड आर द पुअर इन स्टिट, धन्य हैं वे जो भीतर से दरिद्र हैं। ईसाइयत के पास इसकी ठीक व्याख्या नहीं है कि क्या मतलब है जीसस का-भीतर से दरिद्र। बुद्ध के इस वचन में उसकी व्याख्या है। संस्काररहित। जिसने सारी कंडीशनिंग छोड़ दी। समझो, यह बात बड़ी मूल्य की है।

हम संस्कारों से जीते हैं। कोई कहता, मैं हिंदू; कोई कहता, मैं मुसलमान; कोई कहता, मैं ईसाई; यह संस्कार है। कोई पैदा तो नहीं होता हिंदू की भांति, न कोई ईसाई की भांति। तुम हिंदू घर में बड़े हुए, तो एक संस्कार पड़ा। लोगों ने कहा कि तुम हिंदू हो तो तुम मानते हो कि तुम हिंदू हो। तुम हिंदू हो? कैसे? तुम्हें मुसलमान घर में रख दिया होता बचपन से और वहां तुम बड़े हुए होते तो तुम मुसलमान होते। तो यह तो संस्कार है। आए तो थे तुम बिल्कुल शुद्ध दर्पण की भांति, कोरा कागज आए थे; फिर उस पर लिखावटें पड़ीं।

भारतीय घर में रहे, तो भारतीय भाषा सीखी। अरब में होते तो अरबी सीखते। तो भाषा संस्कार है। समझना। भाषा लेकर तुम आए नहीं थे, मौन लेकर आए थे। भाषा सीखी। मौन स्वभाव था, भाषा पर-भाव है। दूसरे ने डाला। जब तुम आए थे, तब तुम न बुद्ध थे, न विद्वान थे। कोई बच्चा न बुद्ध होता, न विद्वान होता। यह तो अभी समय लगेगा, बुद्ध और बुद्धिमान होने में अभी वक्त लगेगा।

कई काम होंगे, कई संस्कार पड़ेंगे, स्कूल में परीक्षाएं होंगी, न-मालूम कितनी प्रक्रियाओं से गुजरेगा, तब कोई इसमें विद्वान हो जाएगा, कोई इसमें बुद्ध हो जाएगा। आए थे बिल्कुल एक जैसे, हो गए अलग-अलग। संस्कार का अर्थ है, जो हमने जन्म के बाद सीखा। जो सीखा, उसका नाम संस्कार है। संस्कार स्वभाव नहीं है। संस्कार स्वभाव के ऊपर पड़ गई धूल है। स्वभाव तो है दर्पण जैसा और संस्कार है धूल जैसा। जब धूल की बहुत परतें पड़ जाती हैं दर्पण पर, तो फिर दर्पण में प्रतिबिंब नहीं बनता।



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