गंगा दशहरा: आज के दिन गंगा स्नान से धुल जाते हैं सभी पाप, मिलता है मोक्ष

Last Updated 12 Jun 2019 02:49:12 AM IST

बुधवार गंगा दशहरा- ऐसा शास्त्र सम्मत है कि देवी गंगा मनुष्य के सभी पापों का क्षय करते हुए उसे मोक्ष प्रदान करती हैं।


आज के दिन गंगा स्नान से धुल जाते हैं सभी पाप, मिलता है मोक्ष

जेष्ठ मास  शुक्लपक्ष की दशमी तिथि रात्रि 6:57 तक है। इस अवसर पर इस प्रकार प्रार्थना करें ‘हे मातु गंगे देवताओं और राक्षसों से वंदित आपके दिव्य चरण कमलों में नमस्कार करता हूं, जो मनुष्यों को नित्य ही उनके भावानुसार मुक्ति और भुक्ति प्रदान करते हैं।’ गंगा जी देवनदी हैं। वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई। धरती पर उनका अवतरण जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ था, यह तिथि उनके नाम पर ‘गंगादशहरा’ के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इस स्थिति को सोमवार और हस्त नक्षत्र हो तो यह तिथि सब पापों का हरण करने वाली होती है।

जेष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है, इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्रीगंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों का नाश होता है, इसीलिए इसे दशहरा कहा गया है। इस दिन गंगा जी में सामर्थ ना हो तो कि किसी पवित्र नदी या सरोवर के जल में स्नान कर अभयमुद्रा युक्त मकरवाहिनी गंगा जी का ध्यान करें। मंत्र एवं षोडशोपचार पूजन करें।

भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या के सूर्यवंशी में हुआ था। उनकी एक पूर्वज थे महाराज सगर। सागर चक्रवर्ती  सम्राट थे। उनकी दो पत्नियां क्रमश: केशिनी और सुमति थी। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस था एवं सुमति के 60000 पुत्र थे। असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। राजा सगर के असमंजस सहित सभी पुत्र अत्यंत उदंड एवं दुष्ट प्रकृति के थे। परंतु पौत्र अंशुमान धार्मिंक एवं देव गुरु पूजक था। पुत्रों से दुखी होकर महाराज सगर ने  असमंजस को देश से निकाल दिया  तथा अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया। सगर के साठ हजार पुत्रों से देवता भी दुखी रहते थे।

एकबार महाराज सगर ने अमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया तथा उसके लिए घोड़ा भी छोड़ा। इंद्र ने अमेध यज्ञ के घोड़े को चुराकर पाताल में ले जाकर  कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ध्यान मग्न होने के कारण मुनि इस बात को जान न सके।

सगर के साठ हजार अहंकारी पुत्रों ने पृथ्वी का कोना-कोना छान मारा परंतु वे घोड़े को न पा सके। अंत में उन लोगों ने पृथ्वी से पाताल तक मार्ग खोद डाला  तथा कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुंचे। घोड़ा को वहां देखकर वे सभी लोग कपिल मुनि को मारने को  चल पड़े। तपस्या में बाधा पड़ने पर मुनि ने अपनी आंखें खोली उनके तेज से सगर के साठ हजार उद्दंड पुत्र तत्काल भस्म हो गए।

गरु ड़ के द्वारा इस घटना की जानकारी मिलने पर अंशुमान कपिल मुनि के आश्रम में आए तथा उनकी स्तुति की। कपिल मुनि उनके विनय से प्रसन्न होकर बोले अंशुमान घोड़ा ले जाओ और अपने पितामह का यज्ञ पूरा कराओ। यह सगरपुत्र उद्दंड, अहंकारी और  अधार्मिंक थे। इनकी मुक्ति तभी हो सकती है जब गंगाजल से इनकी राख का स्पर्श हो। अंशुमान ने घोड़ा  लेजाकर अपने पिता महाराज सगर का  यज्ञ संपन्न कराया।

महाराज सगर के बाद अंशुमान राजा बने,  परंतु उन्हें अपने चाचाओं की मुक्ति की चिंता बनी रही। कुछ समय बाद अपने पुत्र दिलीप को राज्य का कार्यभार सौंप कर वे वन में चले गए। गंगा जी को लाने के लिए तपस्या करने लगे और तपस्या में ही उनका देहांत हो गया। महाराजा दिलीप ने भी अपने पुत्र भागीरथ को राज्यभार देकर स्वयं पिता के मार्ग का अनुसरण किया।  उनका भी तपस्या में देहांत हो गया।

भगवान श्री राम के वंशज भगीरथ के घोर तपस्या करने के बाद देवी गंगा धरती पर अवतरित हुई। गंगा के अवतरित होने पर श्री राम के वंशजों का कल्याण हुआ तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। ऐसा शास्त्र सम्मत है कि जब गंगा जी का धरती पर अवतरण हुआ इसके बाद भगवती भागीरथी गंगा जी मार्ग को हरा भरा करते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची, जहां महाराज भगीरथ की 60000 पूर्वज भस्म की ढेरी बने पड़े थे।

पंडित प्रसाद दीक्षित
ज्योतिषाचार्य एवं पूर्व ट्रस्टी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment