जीवन-साधना
नारद एक बार मनोकामना मांगने के लिए भगवान के पास गए और ये कहने लगे-एक युवती का स्वयंवर होने वाला है और मुझे आप राजकुमार बना दीजिए, सुंदर बना दीजिए, ताकि मेरी अच्छी लड़की से शादी भी हो जाए और मैं सम्पन्न भी हो जाऊं; दहेज जो मिलेगा, उससे मालदार भी हो जाऊंगा।
श्रीराम शर्मा आचार्य |
मालदार बनने की और सम्पन्न बनने की दो ही तो मनोकामनाएं हैं और क्या मनोकामना है? एक लोभ की मनोकामना है, एक मोह की मनोकामना है।
दोनों के अलावा और कोई तीसरी मनोकामना दुनिया में है ही नहीं। इन दोनों मनोकामनाओं को लेकर जब नारद भगवान के यहां गए, तो भगवान के अचम्भे का ठिकाना नहीं रहा। भक्त कैसा? जिसकी मनोकामना हो। मनोकामना होगी तो भक्त नहीं होगा-भक्त होगा तो मनोकामना नहीं होगी। दोनों का निर्वाह एक साथ नहीं हो सकता। जहां अंधेरा होगा, वहां उजाला नहीं रहेगा; जहां उजाला रहेगा, वहां अंधेरा नहीं होगा।
दोनों एक साथ जोड़ कैसे होगा? इसलिए भगवान सिर पर हाथ रख करके जा बैठे। अरे! तुम क्या कहते हो नारद? लेकिन नारद ने अपना आग्रह जारी रखा-नहीं, मेरी मनोकामना पूरी कीजिए, मुझे मालदार बनाइए, मेरी विषय-वासना पूरी कीजिए। भगवान चुप हो गए। नारद ने सोचा-भगवान ने चुप्पी साध ली है, शायद मेरी बात को मान लिया होगा। भगवान को माननी चाहिए भक्त की बात ऐसा ख्याल था। बस वो चले गए स्वयंवर में। स्वयंवर में जाकर के बैठे। राजकुमारी ने देखा-कौन बैठा है? नारद जी का और भी बुरा रूप बना दिया-बंदर जैसा। राजकुमारी देखकर मजाक करने लगी, हंसने लगी; ये बंदर जैसा कौन आ करके बैठा है? बस, उसको माला तो नहीं पहनाई और दूसरे राजकुमार को माला पहना दी।
नारद जी दुखी हुए, फिर विष्णु भगवान के पास गए; गालियां बकने लगे। विष्णु ने कहा-अरे नारद! एक बात तो सुन। हमने किसी भक्त की मनोकामना पूरी की है क्या आज तक? जब से सृष्टि बनी है और जब से भक्ति का विधान बना है, तब से भगवान ने एक भी भक्त की मनोकामना पूरी नहीं की है। हर भक्त को मनोकामना का त्याग करना पड़ा है और भगवान की मनोकामना को अपनी मनोकामना बनाना पड़ा है। बस, कल हम ये बता रहे थे कि आप अगर उपासना कर सकते हो, तो आप भी भगवान के बराबर हो सकते हैं और उनसे बड़े भी हो सकते हैं और भगवान के गुण और आपके गुण एक बन सकते हैं।
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