वस्त्र
सभी समाज में यह विश्वास रहा है कि आर्थिक संपन्नता खुशहाली लाती है, लेकिन अगर आप ऐसे राष्ट्रों की तरफ देखें जो लंबी अवधि से संपन्न रहे हैं, जैसे कि अमेरिका, तो यह बताया जाता है कि वहां के 70 फीसद वयस्क लोग डॉक्टरों द्वारा निर्धारित दवा खाते हैं।
![]() जग्गी वासुदेव |
यूरोप में, जहां कई दशकों से लगातार संपन्नता बनी हुई है, 38 फीसद लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं। अगर आप बाजार से कुछ खास दवा हटा लें, तो जनसंख्या का एक बड़ा भाग पागल हो जाएगा। ये कोई खुशहाली नहीं है। गरीबी से समृद्धि की ओर की यात्रा एक कठिन यात्रा है, चाहे वह किसी व्यक्ति के लिए हो, या समाज, राष्ट्र या विश्व की बड़ी जनसंख्या के लिए। और ये पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल नहीं होती, मगर अधिकतर लोग जब संपन्नता हासिल कर लेते हैं, तो उसका आनंद नहीं ले पाते। लोगों को यह जानना, समझना चाहिए कि उनके जीवन की गुणवत्ता इस बात से निर्धारित नहीं होती कि वे कौन सी गाड़ी चलाते हैं, कहां रहते हैं, या वे क्या पहनते हैं? यह इस बात से निर्धारित होती है कि कोई व्यक्तिकितना आनंदपूर्ण व शांत है। खुशहाली प्राप्त करने के लिये लोग हमेशा से ऊपर की ओर देखते रहे हैं और फिर आपस में लड़ते रहे हैं। फिर उन्होंने अपने आसपास देखना शुरू किया और इस धरती की हालत खराब कर दी।
किंतु खुशहाली तभी आती है जब आप अंदर की ओर मुड़ते हैं। समाधान पाने का एकमात्र रास्ता अंदर की ओर है। एक आध्यात्मिक संभावना में, अपनी भौतिकता से परे की संभावना में निवेश करना ही सच्चा रास्ता है। अगर आप को लंबी-अवधि के लाभ चाहिए तो आप को लंबी-अवधि के निवेश करने होंगे। आज से सौ साल पहले अगर आप किसी भारतीय गांव में जाते तो एक ऐसे व्यक्ति को पाने के लिए आप को सारा गांव ढूंढना पड़ता जो बस स्थानीय भाषा में पढ़, लिख सकता हो। आज लगभग 70 फीसद लोग अपनी मातृभाषा में पढ़ लिख सकते हैं और कई अंग्रेजी भी बोल सकते हैं। ये बदलाव इसलिए आया है कि हमने स्कूल बनाए, कक्षाएं लगाई और शिक्षकों को प्रशिक्षित किया। इसी तरह, मानव चेतना को ऊपर उठाने के लिए, व्यक्तिगत स्तर पर मनुष्य में बदलाव लाने के लिए, सारी दुनिया में जो एक बात करनी जरूरी है वो ये है-कि हम आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास करें, मानवीय भी और अन्य तरह का भी।
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