परोपकार

Last Updated 16 Apr 2019 06:34:03 AM IST

उनके प्रति कृतज्ञता की अनुभूति करो, जिन्होंने तुमसे कुछ ग्रहण किया है। वे लेने से इनकार भी कर सकते थे। उनका परोपकार तो देखो।


आचार्य रजनीश ओशो

उन्होंने तुम्हें अपने ऊपर बरसने दिया है, ठीक पानी से भरे बादल की तरह। जब कोई बादल पानी से लबालब भरकर बरसता है तो क्या तुम्हारे ख्याल से वह ढूंढ़ता फिरता है कि बारिश में भीगने लायक कौन है? क्या वह बादल ब्राह्मण के खेत में ज्यादा और गरीब शूद्र के खेत में कम पानी बरसता है? वह तो प्यासी धरती का कृतज्ञ भर होता है, जो उसे आनंद के साथ ग्रहण करती है। अचानक सूखी धरती नहीं रहती, वह रस और जीवन से परिपूर्ण हो उठती है। प्यासी धरती एक परोपकार ही तो करती है एक बादल का बोझ हल्का करके। वह बादल को मुक्त कर देती है ताकि बहती हुई हवा के साथ आसानी के साथ किसी भी दिशा में उड़ सके। लेकिन किसी धर्म ने इसके बारे में कभी नहीं सोचा। धर्मो की चिंता तो धन और सत्ता के साथ जुड़ी रही है, जो उन्हें अमीर लोगों से ही मिल सकते हैं। वे धनी लोगों को दान करने के बारे में समझाने की भरसक कोशिश करते रहे हैं..पर घुमा-फिरा कर। एक बौद्ध शास्त्र में परोपकार की चर्चा पढ़ते हुए मुझे अचरज हुआ कि धार्मिंक समझे जाने वाले लोगों के दिमाग में कितनी चालाकी भरी होती है।

मुझे नहीं लगता कि ये बातें स्वयं गौतम बुद्ध ने कही होंगी क्योंकि इनका संग्रह तो उनकी मृत्यु के बाद हुआ है। यह शास्त्र सबसे पहले परोपकार के सौंदर्य की चर्चा करता है, उसकी अच्छाई की चर्चा करता है, उस पुरस्कार की चर्चा करता है, जो परोपकारी को दूसरी दुनिया में मिलता है। अंत में कहता है कि लेकिन देना है तो केवल उनको दो जो उसकी पात्रता रखते हैं। फिर वह पात्र व्यक्ति को परिभाषित करता है। वह परिभाषा ऐसी है कि केवल एक बौद्ध भिक्षु ही उसमें फिट हो सकता है। हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों का भी यही रवैया है। कोई स्वीकार करने के परोपकार के बारे में नहीं सोचता क्योंकि उन्हें स्वयं अपने बारे में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे तो धन के बारे में चिंतित हैं कि उसे कैसे प्राप्त किया जाए, लोगों को कैसे यकीन दिलाया जाए कि जो कुछ दे रहे हैं, उसमें बेहतर धंधा है। क्योंकि वे जो देंगे, उसमें भी ज्यादा उन्हें दूसरी दुनिया में पाने का आश्वासन होगा। यह कैसा परोपकार हुआ? परोपकार शतरे पर नहीं होता। वह तो सहज रूप से देने का नाम है और उस कृतज्ञता का नाम है कि उस अस्वीकार नहीं किया गया और उसे ग्रहण किया गया।



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