एकांत का आनंद
एकांत में होना और मौन एक ही अनुभव के दो आयाम हैं। एक ही सिक्के के दो पहलू।
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यदि कोई व्यक्ति मौन को अनुभव करना चाहता है तो इसके लिए उसे अपने एकांत में जाना होगा। एकांत अकेलापन नहीं है। अकेलापन उदासी होती है। एकांत में व्यक्ति अपने को पाना चाहता है।
वह अपने से भागा हुआ नहीं होता। एकांत अपने साथ होने का नाम है। इसी एकांत में वह एक है। वह वहां है। हम अकेले पैदा होते हैं। हम अकेले मरते हैं। इन दो वास्तविकताओं के बीच हम साथ होने के हजारों भ्रम पैदा करते हैं।
सभी तरह के रिश्ते, दोस्त और दुश्मन, प्रेम और नफरत, देश, वर्ग, धर्म। एक बंधन ही तो हैं। एक दिलचस्प मोहपाश। जबकि एक इस तथ्य हम अकेले हैं को टालने के लिए हम सभी तरह की कल्पनाएं पैदा करते हैं। लेकिन जो कुछ भी हम करते हैं। कर लें पर वास्तविकता नहीं बदल सकती। एक सत्य बदल नहीं सकता।
वह ऐसा ही है, और उससे भागने की जगह, श्रेष्ठ ढंग यह है कि इसका आनंद लें।अपने एकांत का आनंद लेना ही ध्यान है। ध्यानी वह है जो अपने अकेले होने में गहरा उतरता है, यह जानते हुए कि हम अकेले पैदा होते हैं, हम अकेले मरेंगे, और गहरे में हम अकेले जी रहे हैं। तो क्यों नहीं इसे अनुभव करें कि यह एकांत है क्या? यह हमारा आत्यंतिक स्वभाव है, हमारा अपना होना। जब भी एकांत होता है, तो हम अकेलेपन को एकांत समझ लेते हैं। और तब हम तत्काल अपने अकेलेपन को भरने के लिए कोई उपाय कर लेते हैं। पिक्चर देखने चले जाते हैं।
अकेलेपन से भाग कर रेडियो खोल लेते हैं। बेचैनी में अखबार पढ़ने लगते हैं। और जब बहुत कुछ नहीं सूझता, तो सो जाते हैं। नींद में सपने देखने लगते हैं। मगर अपने अकेलेपन को जल्दी से भर लेते हैं। ध्यान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है, एकांत आनंद लाता है। मोद लाता है। ये उनके लक्षण हैं। अगर आप घड़ीभर एकांत में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं आनंद की पुलक से भर जाएगा। और आप घड़ी भर अकेलेपन में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं थका और उदास, और कुम्हलाए हुए पत्तों की तरह आप झुक जाएंगे।
अकेलेपन में उदासी पकड़ती है, क्योंकि अकेलेपन में दूसरों की याद आती है। और एकांत में आनंद आ जाता है, क्योंकि एकांत में प्रभु से मिलन होता है। वही आनंद है, और कोई आनंद नहीं है। अब यह मत कहना कि प्रभु हैं ही नहीं। इस बहस में मत पड़ना। यह फरेब की तरफ ले जाएगा।
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