योग
योग कोई व्यायाम की प्रणाली नहीं है, जैसा कि आज सामान्य रूप से समझा जाता है। ‘योग’ का शाब्दिक अर्थ है ‘जुड़ना‘ या ‘मिलना’। लेकिन आप के अपने अनुभव में एक आप हैं और एक ब्रह्माण्ड है।
![]() जग्गी वासुदेव |
जब किसी भी कारण से जीवन में थोड़ी भी कड़वाहट आ जाती है या कुछ गड़बड़ हो जाती है, तो फिर आप की स्थिति ‘आप विरु द्ध ब्रह्माण्ड’ की हो जाती है।
आप एक गलत प्रकार के मुकाबले में उतर जाते हैं। मनुष्यों की जो भी समस्याएं हैं- उनके डर, उनकी असुरक्षा की भावना-वे इसलिये है क्योंकि वे इस तरह से जीते हैं जैसे सारा ब्रह्माण्ड उनके विरु द्ध हो। योग का अर्थ है कि आप जागरूकतापूर्वक अपनी व्यक्तिगतता की सीमाओं को मिटाते हैं।
सिर्फ विचारों और भावनाओं में नहीं, बल्कि वास्तविक रूप से, अपने अनुभव में। आप व्यक्ति और ब्रह्माण्ड को एकरूप कर देते हैं। तो योग, कोई सुबह शाम किया जाने वाला अभ्यास नहीं है। हां, इसमें अभ्यास है, लेकिन अभ्यासों के अलावा भी इसके अन्य आयाम हैं। आप के जीवन का हर पहलू-जिस तरह से आप चलते हैं, सांस लेते हैं, बात करते हैं- सभी कुछ उस जुड़ाव या मिलन की ओर बढ़ने की एक प्रक्रिया बन सकता है। ऐसा कोई भी काम नहीं है, जो इस प्रक्रिया का हिस्सा न बन सके। यह कोई कार्य नहीं है, यह एक विशेष गुण है।
आप अगर अपने शरीर, मन, भावनाओं और ऊर्जाओं को एक खास तरह से विकसित करते हैं तो आप में एक विशेष गुण आ जाता है। यही योग है। आप अगर अपने बगीचे की देखभाल अच्छी तरह से करते हैं तो वहां फूल खिलते हैं। इसी तरह अगर आप उसकी अच्छी तरह से देखभाल करें, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, तो फिर सुंदर फूल खिलेंगे ही। इसका अर्थ यह है कि शांत, प्रसन्न, आनंदित होना आप के बाहर की परिस्थिति पर निर्भर नहीं होगा, इन चीजों को आप तय करेंगे आप जब सुबह उठते हैं, तो पहली चीज जो आप को करनी चाहिये वह है मुस्कुराना क्योंकि यह कोई छोटी बात नहीं है कि आप सुबह उठ गए हैं। ऐसे हजारों लोग हैं जो कल रात सोये थे और आज सुबह उठे ही नहीं।
लेकिन आप उठ गए हैं तो मुस्कुराइये, क्योंकि आप उठ गए हैं। और फिर इधर-उधर देखिये, अगर वहां कोई है तो उन्हें देख कर भी मुस्कुराइए क्योंकि लाखों लोगों के लिये, उनका कोई प्रियजन आज सवेरे नहीं उठे। आप के जितने भी प्रियजन हैं वे सब उठ गए हैं-वाह, आज तो बढ़िया दिन है, है न?
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