युद्ध उचित नहीं
मनुष्य के कृत्यों को देखो। तीन हजार वर्षों में पांच हजार युद्ध आदमी ने लड़े हैं। उसकी पूरी कहानी हत्याओं की कहानी है, लोगों को जिंदा जला देने की कहानी है और एक को नहीं, हजारों को। और यह कहानी खत्म नहीं हो गई है।
आचार्य रजनीश ओशो |
अगर यही विकास है, तो ऐसे विकास का कोई मतलब नहीं। सच तो यह है कि आदमी विकसित नहीं हुआ है, केवल वृक्षों से नीचे गिर गया है। अब तुम बंदर के साथ भी मुकाबला नहीं कर सकते हो। अब तुममें वह बल भी नहीं है कि तुम एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर छलांग लगा जाओ। अब वह जान भी न रही, वह यौवन भी न रहा, वह ऊर्जा भी न रही और तुम्हारे कृत्यों की पूरी कहानी इस बात का सबूत है कि तुम आदमी नहीं बने, राक्षस बन गए।
हां राक्षस, लेकिन अच्छे-अच्छे नामों की आड़ में। हिंदू की आड़ में। हिंदू की आड़ में तुम मुसलमान की छाती में छुरा भोंक सकते हो, बिना किसी परेशानी के। मुसलमान की आड़ में तुम हिंदू के मंदिर को जला सकते हो, जिसने तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बिना किसी चिंता के। दूसरे महायुद्ध में अकेले हिटलर ने साठ लाख लोगों की हत्या की-एक आदमी ने। इसको तुम विकास कहोगे? दूसरा महायुद्ध खत्म होने को है, जर्मनी ने हथियार डाल दिए हैं और अमेरिका के प्रेसीडेंट ने जापान के ऊपर, हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिरवाए। खुद अमेरिकी सेनापतियों का कहना है कि यह बिलकुल बेकार बात थी, क्योंकि जर्मनी के हार जाने के बाद जापान का हार जाना ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह की बात थी।
पांच साल की लड़ाई अगर दो सप्ताह और चल जाती तो कुछ बिगड़ न जाता। लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी जैसे बड़े नगरों पर जिनके निवासियों का युद्धों से कोई संबंध नहीं; छोटे बच्चे और बूढ़े और स्त्रियां- दस मिनट के भीतर दो लाख व्यक्ति राख हो गए। और अमेरिका के जिस प्रेसीडेंट ने यह आज्ञा दी, उसका नाम भी हमने अभी तक नहीं बदला। उस प्रेसीडेंट का नाम था, ट्रूमैन; सच्चा आदमी। अब तो कम से कम उसे अनट्रूमैन कहना शुरू कर दो और दूसरे दिन सुबह जब अखबारों ने, अखबारों के प्रतिनिधियों ने प्रेसीडेंट से पूछा-क्या आप रात आराम से सो तो सके, तो ट्रूमैन ने कहा कि मैं इतने आराम से कभी नहीं सोया, जितना कल रात सोया, जब मुझे खबर मिली कि एटम बम सफल हो गया है। एटम बम की सफलता महत्त्वपूर्ण है। दो लाख निहत्थे, निर्दोष आदमियों की हत्या कोई चिंता पैदा नहीं करती। इसको तुम आदमी कहते हो?
Tweet |