गुरु
किसी ने मुझसे कुछ समय पहले पूछा था, ‘क्या सिर्फ ब्रह्मचारी ही आप के शिष्य हैं?’ मैंने कहा, ‘हां, वे ही मेरे शिष्य हैं।’
जग्गी वासुदेव |
जब मैं कहता हूं,‘ब्रह्मचारी’, तो इसका मतलब सिर्फ उन्हीं लोगों से नहीं है, जिन्होंने आधिकारिक रूप से दीक्षा ली है। उनका एक औपचारिक प्रक्रिया से गुजरना कोई मुद्दा नहीं है। हां, कुछ मायने में वे उस मार्ग पर हैं। अगर सवाल है कि क्या सिर्फ ब्रह्मचारी ही मेरे शिष्य हैं? तो मैं कहूंगा कि वे ब्रह्मचारी नहीं हैं तो वे किसी भी तरह से मेरे शिष्य नहीं हैं। उनकी रु चि किसी और चीज में है तो शिष्य होने का सवाल ही कहां है? वे किसी के भी शिष्य नहीं हो सकते। देखिए, आप इनके या उनके शिष्य नहीं होते, यदि आप शिष्य हैं तो हैं, बस यही बात काफी है। आप भक्त हैं तो आप भक्त हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आप इन भगवान के भक्त हैं, या उन भगवान के-यह तो बस एक मूर्खता है। आप एक भक्त हैं-यही बहुत है। यह एक गुण है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो (मार्ग दर्शन के लिए) मेरी ओर देखते हैं, लेकिन मुझे गुरू नहीं मानते। वे आगे भी यहां घूमते हुए मिलेंगे। मैं शायद यहां न रहूं। मगर वे यहां घूमते हुए मिलेंगे क्योंकि उन्होंने स्वाद चख लिया है, अब वे खाना चाहेंगे। गुरू का मतलब है, ‘अंधकार को मिटाने वाला’।
‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रू’ का अर्थ है ‘मिटाने वाला’। जब आप कहते हैं कि आप के कोई गुरू हैं, तो इसका मतलब आप का अंधकार मिट गया है। तब आप यहां फिर से क्यों होंगे? आप का अंधकार दूर होने या मिटने का मतलब यह नहीं है कि आप प्रकाश हो गए हैं, बल्कि इसका मतलब यह है कि आप ‘कुछ नहीं’ हो गए हैं, आप खुद अंधकार बन गए हैं। फिर कुछ दूर करने की जरूरत ही नहीं रहती। अगर आप इससे दूर हैं, तो अंधकार एक भयानक बात है। अगर आप अंधकार बन जाते हैं, तो यह अनंत या असीम होना है। अंधकार भयानक इसलिए है क्योंकि आप किसी चीज के एक छोटे से हिस्से की तरह हैं। आप अंधकार हो जाते हैं, तो फिर कोई सीमा नहीं रहती। मैं आप को आशीर्वाद दूं कि ‘आप अनंत हो जाएं’ तो आप को अच्छा लगेगा पर अगर मैं आप को आशीर्वाद यह दूं कि ‘आप अंधकार बन जाएं’, तो आप को यह श्राप जैसा लगेगा। लेकिन ऐसा नहीं है, अंधकार अनंत है, अनंत होना ही अंधकार है।
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