जीवन का उत्सव

Last Updated 18 Dec 2018 12:46:06 AM IST

तुम जहां हो, वहीं से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी। तुम बैठे मूलाधार में और सहसार की कल्पना करोगे तो सब झूठ हो जाएगा।


आचार्य रजनीश ओशो

फिर इसमें दुखी होने का भी कारण नहीं क्योंकि जो जहां है वहीं से यात्रा शुरू हो सकती है। इसमें चिंतित भी मत हो जाना कि अरे, दूसरे मुझसे आगे हैं, और मैं पीछे। दूसरों से तुलना में भी मत पड़ना! नहीं तो और दुखी हो जाओगे। सदा अपनी स्थिति समझो। अपनी स्थिति से राजी हो जाओ। तुमसे कहना चाहता हूं, तुम अपनी नीरसता से राजी हो जाओ। इससे बाहर निकलने की चेष्टा ही छोड़ो। इसमें आसन जमाकर बैठ जाओ। तुम कहो-मैं नीरस हूं। तो मेरे भीतर फूल नहीं खिलेंगे, नहीं खिलेंगे, तो मेरे भीतर मरु स्थल होगा; मरुद्यान नहीं होगा, नहीं होगा। मरु स्थल का भी अपना सौंदर्य है। मरु स्थल देखा है? मरु स्थल का भी अपना सन्नाटा है। मरु स्थल की भी फैली दूर-दूर तक अनंत सीमाएं हैं-अपूर्व सौंदर्य को अपने में छिपाए है। मरु स्थल होने में कुछ बुराई नहीं। परमात्मा ने तुम्हारे भीतर अगर स्वयं को मरु स्थल होना चाहा है, बनाना चाहा है, तुम उसे स्वीकार कर लो। तुम्हें मेरी बात कठोर लगेगी क्योंकि तुम चाहते हो कि जल्दी से गद्गद् हो जाओ। तुम चाहते हो कि कोई कुंजी दे दो, कोई सूत्र हाथ पकड़ा दो कि मैं भी रसपूर्ण हो जाऊं। लेकिन हो तुम विरस।

तुम्हारी विरसता से रस की आकांक्षा पैदा होती है। आकांक्षा से द्वंद्व पैदा होता है। द्वंद्व से तुम और विरस हो जाओगे। तो मैं तुम्हें कुंजी दे रहा हूं। तुमसे कह रहा हूं-तुम विरस हो, तो तुम विरस में डूब जाओ। तुम यही हो जाओ। तुम कहो- परमात्मा ने मुझे मरु स्थल बनाया तो मैं अहोभागी कि मुझे मरु स्थल की तरह चुना। तुम इसी में राजी हो जाओ। तुम भूलो गीत-गान। भूलो गद्गद् होना। तुम छोड़ो ये सब बातें। बिल्कुल शुष्क ही रहो। जरा चेष्टा मत करो, नहीं तो पाखंड होगा। ऊपर-ऊपर मुस्कुराओगे और भीतर-भीतर मरु स्थल होगा। ऊपर से फूल चिपका लोगे, भीतर से कांटे होंगे। तुम ऊपर से चिपकाना ही भूल जाओ। तुम तो जो भीतर हो, वही बाहर भी हो जाओ। और तुमसे मैं  कहता हूं-तब क्रांति घटेगी। तुम अपने मरु स्थल होने से संतुष्ट हो जाओ तो अचानक तुम पाओगे-मरु स्थल कहां खो गया, पता न चलेगा। अचानक तुम आंख खोलोगे और पाओगे कि हजार-हजार फूल खिले हैं। मरु स्थल तो खो गया, मरु द्यान हो गया! संतोष मरु द्यान है। असंतोष मरुस्थल है। और तुम जब तक अपने मरु स्थल से असंतुष्ट रहोगे, मरु स्थल पैदा होता रहेगा क्योंकि हर असंतोष नए मरु स्थल बनाता है।



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