ध्यान का महत्त्व

Last Updated 14 Dec 2018 06:28:10 AM IST

मेरे पूरे जीवन की कोशिश यही रही है कि रहस्यवाद को, आध्यात्मिकता को सरल व तार्किक तरीके से आपके सामने पेश कर सकूं ताकि आप उसे आसानी से समझ सकें, ग्रहण कर सकें।


ध्यान का महत्त्व

लेकिन तमाम लोग ऐसे हैं, जो आसान चीजों को भी रहस्यमय या दैवीय बनाने में लगे हैं। अगर कहीं घंटी बजती है या कोई फूल गिरता है या फिर अगर बिजली चली जाती है, तो लोग इसमें दैवीय आयाम ढूंढ़ने लगते हैं।

दैवीय आयाम को इंसानों की पहुंच में लाने के बजाय वे लोग जीवन के सहज व सरल पक्षों को दूसरे आयामों में ले जाने की कोशिशों में लगे हुए हैं। सबसे पहली बात तो यह कहना चाहूंगा कि आप ध्यान का इस्तेमाल अपनी समस्याओं के समाधान के तौर पर करने की कोशिश मत कीजिए। सवाल है कि क्यों? हमें अपनी समस्याओं के समाधान में ध्यान का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए? दरअसल, यह तो कुछ ऐसी ही बात हो गई कि मामूली से जुकाम को ठीक करने के लिए आप कीमोथेरेपी का इस्तेमाल करें। मामूली से जुकाम को संभालने के लिए रुमाल काफी है।

जुकाम में आपको कुछ दिनों तक नाक बहानी होगी, अदरक या काली मिर्च की चाय पीनी होगी और यह अपने आप ठीक हो जाएगा। जब आप ध्यान करना शुरू करते हैं तो उस दौरान आप मानव अस्तित्व की सबसे मूलभूत समस्या से निबटने की कोशिश कर रहे होते हैं, इसलिए उसका इस्तेमाल मामूली चीजों के लिए मत कीजिए। अगर आप मानव अस्तित्व की सबसे बुनियादी समस्या से निबटने की कोशिश करते हैं तो बाकी सभी समस्याएं तुच्छ और अर्थहीन नजर आती हैं। अगर आप इस स्थिति तक नहीं पहुंचे हैं तो कोई बात नहीं।

लेकिन फिर भी जुकाम ठीक करने के लिए कीमो का इस्तेमाल करना ठीक नहीं। यह बेहद अफसोस की बात है कि जब आप ध्यान करते हैं, केवल तभी आपके मन में कुछ स्पष्टता रहती है, बाकी समय आपके मन में भारी हलचल रहती है। इसकी वजह है आपके भीतर बुनियादी तौर पर एक भ्रम है। हम ईशा क्रिया द्वारा इसको सरल तरीके से दूर करने की कोशिश करते हैं।

क्रिया के दौरान कहा जाता है- ‘न ही मैं शरीर हूं और न ही मन हूं।’ अगर आपने यह चीज अनुभव के स्तर पर समझ ली तो आपकी बाकी समस्याएं झटके में गायब हो जाएंगी। अगर आप अपने अस्तित्व की मूल प्रकृति को जानते तो ये सारी चीजें आपके लिए महज एक खेल होतीं।

जग्गी वासुदेव


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