भावों के तूफान में

Last Updated 04 Dec 2018 06:08:50 AM IST

मुझे लगता है कि मैं हमेशा भावों के तूफान में घिरा रहता हूं, इससे बाहर कैसे निकलना? मैंने सिर्फ निरीक्षण करके देखा है लेकिन जैसे ही एक भाव चला जाता है, दूसरा आ खड़ा होता है।


आचार्य रजनीश ओशो

हर उस भाव को जीयो जिसे तुम महसूस करते हो। वह तुम ही हो।
घृणा से भरे, कुरूप, अपात्र  जो भी हो, उसमें रहो। जागरूकता के प्रयास में अभी तुम भाव अवचेतन में दबा रहे हो। उनसे निजात पाने का यह तरीका नहीं है। उन्हें बाहर आने दो; उन्हें जीयो। यह कठिन होगा लेकिन अपरिसीम रूप से लाभदायी। एक बार तुमने उनको जी लिया, उनकी पीड़ा झेली और उन्हें स्वीकार किया कि यह तुम हो, कि तुमने खुद को इस तरह नहीं बनाया है, इसलिए तुम्हें खुद का धिक्कार नहीं करना चाहिए, कि तुमने खुद को इसी तरह पाया है..एक बार तुम उन्हें होशपूर्वक जी लेते हो बिना किसी दमन के, तुम आश्चर्यचकित होओगे कि वे अपने आप विलीन हो रहे हैं। तुम्हारी गर्दन पर उनकी पकड़ ढीली हो रही है, तुम्हारे ऊपर उनकी ताकत कम हो रही है। और जब वे विदा होते हैं, तब वह समय आ सकता है जब तुम साक्षीभाव से देखना शुरू करोगे। एक बार सब कुछ चेतन मन में आता है तो वह खो जाता है, और जब सिर्फ  एक छाया रहती है तो वह समय होता है होशपूर्वक देखने का। अभी तो वह स्किजोफ्रेनिया, खंडित मन पैदा करेगा; बाद में बुद्धत्व पैदा करेगा। जब भय हो तो कुछ करने के लिए क्यों पूछते हो? भयभीत होओ! द्वंद्व क्यों पैदा करना? जब भय के क्षण आएं तो डरो, कांपने लगो और भय को हावी हो जाने दो।

यह सतत प्रश्न क्यों कि क्या करें? क्या तुम जीवन को किसी तरह अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते? जब प्रेम हावी हो जाता है, तब क्या करना? प्रेमपूर्ण होओ। कुछ मत करो, प्रेम को हावी होने दो। जब भय होता है तब तूफान में कांपते हुए पत्ते की भांति कंपो, और वह सुंदर होगा। जब वह चला जाएगा, तुम शांत और निस्तरंग महसूस करोगे, ठीक वैसे ही जैसे कोई तेज तूफान गुजर जाता है, तो सब कुछ शांत और नीरव हो जाता है। हमेशा किसी न किसी चीज से लड़ना क्यों? भय होता है कि वह नैसर्गिक है, बिल्कुल नैसर्गिक। ऐसे आदमी की कल्पना करना जो कि भयविहीन हो, असंभव है क्योंकि वह मुर्दा होगा। तब कोई रास्ते पर भोंपू बजा रहा होगा और निर्भय आदमी चलता चला जाएगा, वह फिक्र ही नहीं करेगा। रास्ते में एक सांप आएगा और निर्भय आदमी फिक्र नहीं करेगा। भय न हो तो आदमी बिल्कुल मूर्ख और बेवकूफ होगा। भय तुम्हारी बुद्धि का हिस्सा है; उसमें कुछ भी गलत नहीं है।



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