मनोबल

Last Updated 29 Nov 2018 03:07:41 AM IST

मनोबल हो तो कुछ भी असंभव नहीं। इसके साथ संकल्पबल जुड़ जाता है तो फिर व्यक्ति कुछ भी असाध्य-साध्य कर सकता है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

यह बात  समझ लेना आवश्यक है कि मनोबल क्या है? मनोबल ऐसा साहस है जिसमें हर कार्य को संभव करने की क्षमता रहता है। यह साहस, संकल्प और चैतन्य ऊर्जा आवेगों का समन्वय जैसा है, जिसके रहते व्यक्ति किसी भी परिस्थिति का सामना करने में सक्षम अनुभव करता है। सैंडो और चंदगी राम जैसे आरंभ में अति दुर्बल स्तर के व्यक्ति स्वास्थ्य सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित करने के उपरांत संसार में माने हुए पहलवान बन गए। विद्या, संपन्नता, कुशलता आदि के संबंध में भी यही बात है। माने हुए वैज्ञानिक आइन्स्टीन के बुद्धूपन से अध्यापक भी खिन्न थे और उनके बाप ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘तेरी अपेक्षा एक पिल्ला पाल लेता तो अच्छा रहता।’ परंतु जब आइन्स्टीन में मनोबल जागा और संकल्प उभरा तो वे अपनी उस स्थिति को सुधार करके ऐसे प्रखर बुद्धि संपन्न वैज्ञानिक बन गए कि उनकी गणना विश्व के अनुपम वैज्ञानिकों में हुई। एक बात विशेष रूप से स्मरणीय है कि किसी भी क्षेत्र की सफलता अर्जित करने के लिए मनुष्य को सर्वप्रथम मनोबल को परिष्कृत एवं विकसित करना होता है।

कुमार्ग पर चलने वाले उस आदर्शवादी मनोबल को गंवा बैठते हैं, जो प्रगति के प्रयासों में परिपूर्ण सहायता देता है। मनोबल की अभिवृद्धि चिन्तन में उत्कृष्टता, चरित्र में आदर्शवादिता और व्यवहार में शालीनता का समावेश करने से होती है। यों हत्यारे, डाकू, कुकर्मी और अपराधी भी मनोबल संपन्न दिखाई देते हैं, पर वह वस्तुत: उन्माद जैसा होता है, विघातक भूमिका ही निभा सकता है, आदर्शवादी प्रगति में उससे तनिक भी सहायता नहीं मिलती। ऐसे प्रसंग आने पर वह रेत की दीवार जैसा बिखर जाता है, कागज की नाव जैसा गलता-डूबता दिखाई पड़ता है। जिस मनोबल में उच्चस्तरीय सामथ्र्य होती है, तभी विकसित और हस्तगत होता है, जब उसके साथ आदशरे का भी समावेश हो। संकल्प बल के साथ आदर्शवादिता जुड़ी हुई हो तो ही उसे अंतरात्मा का आशीर्वाद और सहयोग मिलता है। जिनको मनोबल बढ़ाने की इच्छा हो उन्हें आदर्शवादिता की राह अपनानी चाहिए। अच्छे कार्य के लिए संकल्पित होकर उसी के अनुरूप दिनचर्या निर्धारित कर कड़ाई के साथ उसका पालन करना चाहिए।



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