भक्ति
इस देश में, धरती की इस पुरानी सभ्यता में, प्रतिभा बुनियादी रूप से शिक्षा की देन नहीं, बल्कि भक्ति की देन रही है।
जग्गी वासुदेव |
महान वैज्ञानिक, डॉक्टर और गणितज्ञ जैसे सभी लोग ऊंची कोटि के भक्त थे, क्योंकि भक्ति में आप समावेशी हो जाते हैं। समावेश में आपसे परे कुछ नहीं होता। भक्त होने का मतलब है बोध और विवेक के एक ऐसे आयाम पर पहुंचना जहां आप दिव्यता की संभावना को निमंत्रित करते हैं। भक्त कभी हीरे जड़ित सिंहासन पर नहीं बैठता और न ही वह कभी उसकी कामना करता है। उसकी एकमात्र कामना ईश्वर की गोद में बैठने की होती है। उसकी कामना कहीं पहुंचने या जाने की नहीं होती।
कोई भी इंसान सारी सृष्टि के बारे में अपने मौलिक बोध को बदलकर ही ईश्वर की गोद में बैठ सकता है। यह कोई यात्रा नहीं है, जिसे तय करके कोई वहां पहुंच सकता है। भक्कि इंसान के भीतर मौजूद सभी सीमाओं को तोड़ने का एक जबरदस्त साधन है। ये सीमाएं चाहे मनोवैज्ञानिक हों, भावनात्मक हों या फिर कार्मिंक, अगर भक्ति का सैलाब आएगा तो वह बड़ी सहजता से इन सभी बाधाओं व सीमाओं को अपने साथ बहा ले जाएगा।
जबकि नियमित साधना के जरिए इन सीमाओं को हटाने के लिए बहुत सारा काम करना पड़ेगा। लेकिन जो साधना तीव्र भक्ति की अवस्था में की जाती है, उससे आप उन सारी सीमाओं को बहा सकते हैं, जो आपने अपने भीतर बना रखी है। अगर आप एक खूबसूरत गुलदस्ता देखते हैं, तो यह जानने की सहज इच्छा होती है कि इसे किसने बनाया है।
आप एक खूबसूरत कलाकृति देखते हैं तो आप स्वाभाविक रूप से जानना चाहेंगे कि उसे किसने बनाया है। अगर आप एक खूबसूरत बच्चा देखते हैं तो आप जानना चाहेंगे कि इसके माता-पिता कौन हैं? लेकिन आश्चर्य यह है कि बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जो इस सृष्टि की सबसे बेहतरीन रचना ‘इंसान’ के बारे में सवाल पूछते होंगे कि ‘इसका रचयिता कौन है?’ बल्कि आपके पास इसके रेडिमेड जवाब होंगे। भक्ति कोई रेडिमेड जवाब नहीं है। भक्ति आपको वहां ले जाने का एक साधन है। भक्ति कोई निष्कर्ष नहीं है, जो इंसान निकालता है। भक्ति इन सारे निष्कर्षों से परे जाने का रास्ता है। भक्ति उस सैलाब को तैयार करने का एक तरीका है, जो अनुभवों की सारी सीमाओं से परे आपको बहा ले जाता है।
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