आत्म ज्ञान
जब मैं अज्ञानता की बात करता हूं तो मेरा मतलब है कि सब कुछ अज्ञानता ही तो है. हम जिसे ज्ञान कहते हैं, वह भी एक तरह का अज्ञान ही है.
जग्गी वासुदेव |
हर व्यक्तिअज्ञानता की एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी की ओर तब तक बढ़ता है, जब तक कि वह किसी आत्मज्ञानी की परम विस्मृति में डूब जाने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो जाता. हर व्यक्ति के लिए अज्ञानता के मायने अलग-अलग होते हैं. तेनाली रामकृष्ण का नाम तो आपने सुना होगा. वह दक्षिण के एक राजा के दरबार में रहते थे. एक बार वह दरबार में कुछ लोगों के साथ बैठे दर्शनशास्त्र पर चर्चा कर रहे थे. वहां एक आदमी लगातार बेमतलब की बातें कर रहा था. तेनालीराम को बर्दाश्त नहीं हुआ और वह उस आदमी से बोले ‘तुम बेवकूफ हो और किसी काम के नहीं हो, तुम खुद कुछ नहीं हो!’ वह आदमी अपनी इस बेइज्जती से चिढ़ गया और बोला ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह बोलने की कि मैं बेकार हूं? मैं शहर का मशहूर मोची हूं.’ उसके ऐसा कहते ही तेनालीराम ने अपना जूता उठाया और तोड़कर उसकी तरफ फेंकते हुए बोले ‘अगर तुम सचमुच अच्छे मोची हो, तो इसे जोड़ो और नये जैसा बना दो.’ उस आदमी ने तुरंत जूते को उठाया और उसे ठीक करने के लिए वहां से चल पड़ा. अज्ञानता हमेशा बहुत सारी परतों और अलग-अलग सीमाओं में होती है. जिंदगी एक रहस्य की तरह चलती रहती है.
शायद हजारों साल पहले हमें यह भी नहीं पता था कि हमारा शरीर कैसे काम करता है. अब हम उसे खोलकर देख चुके हैं, उसके साथ कई सारे काम भी कर चुके हैं. अब हमें उसके बारे में बहुत सारी जानकारी है. लेकिन हम इसके बारे में जितना ज्यादा जानने की कोशिश करते हैं, यह उतना ही रहस्यमय होता जा रहा है, पहले से भी ज्यादा. विज्ञान के बारे में माना जाता है कि वह आपके जीवन में स्पष्टता लाता है, लेकिन आज आधुनिक भौतिक विज्ञान ने बहुत सारा भ्रम पैदा कर दिया है जो रहस्यवाद से भी ज्यादा रहस्यमय लगता है. हमारी समझ और तथाकथित ज्ञान जितना बढ़ता जाता है, जीवन उतना ही ज्यादा रहस्मय होता जाता है. आत्म-ज्ञान का मतलब जानकारी हासिल करना नहीं है. ज्ञान-प्राप्ति तो असीमित अज्ञानता को छूना है. हर किसी की अज्ञानता की कोई न कोई सीमा होती है. पर आत्म-ज्ञानी व्यक्ति की अज्ञानता असीमित होती है, हर बंधन से मुक्त होती है.
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