मन का महाभारत
महाभारत न तो कभी शुरू होता और न कभी अंत, वह मनुष्य के अज्ञान के साथ चलता ही रहता है.
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
कृष्ण ने गीता कही, उसके पहले भी वह चल रहा था; कृष्ण ने गीता पूरी की, तब भी वह चलता रहा. अज्ञान ही महाभारत है.
कभी शीत, कभी गर्म, कभी प्रकट, कभी अप्रकट, लेकिन मूच्र्छा में तुम लड़ते ही रहोगे. मूच्र्छा में लड़ना ही जीवन मालूम होता है. हजार रूपों में युद्ध चल रहा है, तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता. लेकिन तैयारी तो घर-घर में चलती है; तैयारी तो हृदय-हृदय में चलती है. युद्ध युद्ध के मैदानों पर नहीं लड़े जाते, मनुष्य के अंधकार में लड़े जाते हैं. इसे ठीक से समझ लो, अन्यथा धोखा खड़ा होता है. पहला तो धोखा यह खड़ा हो जाता है कि हम सोचने लगते हैं, महाभारत कोई बाहर का युद्ध है. महाभारत बाहर का युद्ध नहीं है.
युद्ध तो भीतर का है. बाहर भी उसकी प्रतिध्वनि सुनी जाती है, बाहर भी परिणाम होते हैं. एक भी ऐसी तुम्हारे जीवन की पल-दशा नहीं है, जब तुम्हारा किसी न किसी अथरे में संघर्ष न चल रहा हो. और जहां संघर्ष है, वहां कैसे शांति होगी? और जहां संघर्ष है, वहा कैसे समाधि फलित होगी? तुमने कभी ध्यान दिया, कितनी छोटी बातों पर तुम लड़ते हो. जैसे बातें तो बहाना हैं; लड़ना तुम चाहते हो, इसलिए कोई भी बहाना काम दे देता है. एक बड़ी प्रसिद्ध हंगेरियन कहानी है कि एक आदमी का विवाह हुआ.
झगड़ैल प्रकृति का था, जैसे कि आदमी सामान्यत: होते हैं. मां-बाप ने यह सोचकर कि शायद शादी हो जाए तो यह थोड़ा कम क्रोधी हो जाए, थोड़ा प्रेम में लग जाए, जीवन में उलझ जाए तो इतना उपद्रव न करे, शादी कर दी. और आदमी झगडै़ल होते हैं, उससे ज्यादा झगडै़ल स्त्रियां होती हैं. झगडै़ल होना ही स्त्री का पूरा शास्त्र है, जिससे वह जीती है. मां-बाप लड़की के भी यही सोचते थे कि विवाह हो जाए, घर-गृहस्थी बने, बच्चा पैदा हो, सुविधा हो जाएगी. उलझ जाएगी, तो झगड़ा कम हो जाएगा.
जब दो झगड़ैल व्यक्ति मिलते हैं, तो जोड़ नहीं होता गणित का; दो और दो चार, ऐसा नहीं होता, गुणनफल हो जाता है. पहली ही रात, भेंट में जो चीजें आई थीं, उनको खोलने को दोनों उत्सुक थे-पहला डब्बा हाथ में लिया. पति ने कहा यह रस्सी ऐसे न खुलेगी. मैं चाकू ले आता हूं. पत्नी ने कहा कि ठहरो, मेरे घर में भी बहुत भेंटें आती रहीं. तुमने मुझे कोई नंगे-लुच्चों के घर से आया हुआ समझा है? ऐसे सुंदर फीते कैंची से काटे जाते हैं. झगड़ा कई सालों तक चला.
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