बीज
बीज दो तरह के होते हैं; एक वह जो हमारे माता-पिता ने रोपा, जिससे हमें यह शरीर मिला.
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दूसरा बीज वह जो ईश्वर ने बोया और जो हमारे भीतर जीवन उत्पन्न करता है. ये दो अलग-अलग तरह के बीज हैं या कहें कि ये प्रकृति के दो अलग-अलग पहलू हैं.
इनमें से एक को निश्चितता के लिए तैयार किया गया है और दूसरे को संभावना के लिए. संभावना का मतलब ही है अनिश्चितता. जो लोग अनिश्चितताओं से बचने की कोशिश करते हैं, वे वास्तव में संभावनाओं से मुंह मोड़ रहे होते हैं.
शरीर से संबंधित बीज, या कहें भौतिक प्रकृति से संबंधित बीज जिसका रोपण हमारे माता-पिता की ओर से किया गया है, उसमें कुछ खास किस्म के नियम और बाध्यताएं होती हैं. इस बीज की मूल प्रकृति होती है, अपने जीवन को बचाए रखने की. भौतिक शरीर की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि यह बस जीवन को बचाए रखना चाहता है. जीवन को बचाने की चाह में प्रजनन भी शामिल है. इसके जीवन के लिए जो कुछ भी खतरा बन सकता है, यह उससे बचने की कोशिश करता है.
लेकिन जो बीज ईश्वर ने हमारे भीतर रोपा है, जो बीज इस जगत के स्रोत ने हमारे भीतर डाला है, वह बीज नहीं है, वह खुद सृष्टिकर्ता है. हमारे माता-पिता ने हमें बस एक बीज दिया, जिससे यह शरीर बना. लेकिन इस सृष्टि के रचयिता ने हमें बीज नहीं दिया, इसने खुद को ही दे दिया, क्योंकि इस सृष्टि के स्रोत यानी सृष्टा के भीतर जो भी संभावनाएं हैं, वो सब हमारे भीतर भी समाहित हैं.
कोई इंसान इस संभावना को अपने भीतर अनुभव करता है या नहीं, यह अलग बात है, लेकिन यह संभावना उसके भीतर मौजूद तो है ही. जिन लोगों ने अपनी पहचान अपने भौतिक पहलुओं के साथ स्थापित की हुई है, वे हमेशा संभावनाओं या अनिश्चितताओं से बचने की कोशिश करेंगे, क्योंकि अनिश्चितता एक ऐसी चीज है, जिसे हमारा शरीर पसंद नहीं करता.
शरीर को निश्चितता चाहिए. चीजों को निश्चित करने की दिशा में इंसान ने सबसे पहले सामाजिक संरचना में निश्चितता पैदा करने की कोशिश की. इस दिशा में पहला कदम है-परिवार का गठन, एक जैविक बंधन, ताकि उसके मन में निश्चितता का एक भाव रहे. अगर यह शरीर हर किसी से अलग होकर रहे, तो यह बड़ा असुरक्षित महसूस करता है. यह आपके मन का स्वभाव नहीं है, यह आपके शरीर का स्वभाव है कि वह अपनी रक्षा करना चाहता है.
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